अपनी बेटी को

नहीं करावो ऐसे काम, पढ़ने दो अपनी बेटी को।
जीने दो तुम खुलकर बचपन, अपनी बेटी को।।
नहीं करावो ऐसे काम—————।।
बेटी भी पहचान और शान है अपने घर की।
समझो अपना वारिस तुम, अब अपनी बेटी को।।
नहीं करावो ऐसे काम—————।।
छोड़ो तुम यह सोचना, बेटी है पराया धन।
मानो अपनी पहचान तुम, अपनी इस बेटी को।।
नहीं करावो ऐसे काम—————।।
बेटी भी करती है रोशन, अपने बाबुल का नाम।
कहो अपना गौरव- सम्मान, तुम अपनी बेटी को।।
नहीं करावो ऐसे काम—————-।।
मुझको बताओ,किस पद पर नहीं पहुंची है बेटी।
कम नहीं मानो किसी काम में, तुम अपनी बेटी को।।
नहीं करावो ऐसे काम—————–।।
किस्मत वाले हैं वो जिनके घर, बेटी ने जन्म लिया।
अपनी आन, खुशी और जान, समझो अपनी बेटी को।।
नहीं करावो ऐसे काम—————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)