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22 May 2024 · 1 min read

अनुगामी

प्रेम होते ही अनुगामी हो जाना संभव नहीं,
हर बात में सहमत ही हो जाना संभव नहीं।

जीवन के तार सप्तक में जब सुर ही न लगे,
रुँधे कंठ से मधुर गीत गुनगुनाना संभव नहीं।

गुमनाम गलियों में कोई अदृश्य ही हो जाए,
उस गुमशुदा की रिपोर्ट लिखवाना संभव नहीं।

बंद हैं विवेक की किवाड और खिड़कियाँ,
ठंडी हवा के झोकों का आना संभव नहीं।

चेहरे पर छा जाएँ जब उदासी के साए,
ख़ूबसूरत सी तस्वीर बनवाना संभव नहीं।

डॉ दवीना अमर ठकराल ‘देविका’

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