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20 Apr 2023 · 1 min read

अनवरत….

अविभावक ऐसा बनूं
एकता घर की बना रखूं
स्वयं खुश रहूं संतोष धन से
त्याग भावना हिय छुपा रखूं..१

अपनत्व की प्रीति बहे उर में
प्रेम की रीति बनी रहे
निज बाग वाटिका वन उपवन
की छाँव अनवरत घनी रहे।.. २

आंगन मां के आंचल जैसा
अटारी सी छाया पितु की हो
वात्सल्य की धारा ऐसे बहे
ज्यों सरिता पावस ऋतु की हो।..३

स्वसा सारिका सी चहके
घर सहन सुरभित करती रहे
अनुज,अग्रज का प्रेम सदा
हिय में अनुराग भरती रहे ।..४

खेतों मे निरंतर हरियाली हो
खलिहानों मे अन्न की बाली हो
अन्न का भण्डार अनवरत भरा रहे
तब घर आंगन खुशहाली हो..५

लोग सदैव गुणगान करें
संस्कार हमारे ऐसे हों
मर कर भी जीवित रह जाऊं
कर्म अनवरत ऐसे हो ।..६

Language: Hindi
210 Views
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