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14 Aug 2024 · 1 min read

अज़ीम हिन्दुस्तान …

अज़ीम हिन्दोस्ताँ !

बता कैसे कहूँ आख़िर – ‘है हिन्दुस्ताँ अज़ीम’,
यहाँ बे-ईमान लोगों की क़तारें हैं बहुत ।

सभी की इक़्तिज़ा है मुल्क में हमको मिले हक़,
मग़र बे-फर्ज़ रहना चाहते हैं ।
हमें नाचीज़ लगता मुल्क का आज़ाद होना,
शाइ’द ग़ुलामी फ़िर से सहना चाहते हैं !

नज़र को खोलकर देखोगे जब तुम इक दफ़ा,
तो जानोगे कि गद्दारी के नज़ारे हैं बहुत ।
बता कैसे कहूँ आख़िर – ‘है हिन्दुस्ताँ अज़ीम’,
यहाँ बे-ईमान लोगों की क़तारें हैं बहुत ।

यहाँ है मुल्क आख़िर में, हैं पहले ज़ात-मज़हब,
वतन से इश्क़, ज़्यादातर, नुमाइश ।
फ़िगारों से नहीं हमको है मतलब, रहे ख़ुद का–
मकाँ, इतनी सी ख़्वाहिश ।

नहीं इस्लाह अब तक किया हमने,
कड़ी ज़ंजीर के भी दिन गुज़ारे हैं बहुत।
बता कैसे कहूँ आख़िर – ‘है हिन्दुस्ताँ अज़ीम’,
यहाँ बे-ईमान लोगों की क़तारें हैं बहुत ।

यहाँ के हुक्मराँ मौकापरस्ती के शहंशाह,
औ’ शाइ’र लूटते बस वाहवाही ।
बिखरना, फ़िर से, मुस्तक़बिल है अपना,
अलैहिदगी-पसंद देते गवाही ।

हक़ीक़त मा’लूम है? बहार-ए-गुलशन की जगह,
ख़िजाँ की सन्नाटे-भरी चीखें पुकारें हैं बहुत,
बता कैसे कहूँ आख़िर – ‘है हिन्दुस्ताँ अज़ीम’,
यहाँ बे-ईमान लोगों की क़तारें हैं बहुत ।

— सूर्या

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