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13 Feb 2022 · 3 min read

अग्रवाल समाज और स्वाधीनता संग्राम( 1857 1947)

*समीक्षा*
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*पुस्तक का नाम : अग्रवाल समाज और* *स्वाधीनता संग्राम( 1857 1947)*
*लेखक :अशोक कुमार गुप्ता*
*प्रथम संस्करण : जुलाई 2019*
*मूल्य ₹250*
*प्रकाशक : अशोक कुमार गुप्ता एवं श्रीमती वीना गुप्ता*
*पुस्तक प्राप्ति स्थान : 2 ब 15 , प्रताप* *नगर ,जोधपुर (राजस्थान ) 342003*
*मोबाइल 094606 49764*
*06376 566 713*
*समीक्षक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा*
*रामपुर (उत्तर प्रदेश)*
*मोबाइल 99976 15451*
तीन सौ चौदह पृष्ठों में अग्रवाल समाज के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का विवरण प्रस्तुत करना अपने आप में कोई हँसी – खेल नहीं होता लेकिन मुस्कुराते हुए अशोक कुमार गुप्ता जी ने इस असंभव कार्य को संभव करके दिखा दिया । कारण एक ही है वह धुन के पक्के हैं और एक मिशन के तौर पर उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के जीवन चरित्र को प्रष्ठों पर उतारा है। किसी स्वातंत्र्य वीर को 2 – 4 पंक्तियों का जीवन परिचय प्राप्त हुआ तो वहीं लाला लाजपत राय जैसे अग्रणी स्वतंत्रता सेनानियों को 6 प्रष्ठों का जीवन परिचय – विस्तार दिया गया। कल्पना ही की जा सकती है कि इतनी बड़ी संख्या में अग्रवाल स्वतंत्रता सेनानियों का जीवन परिचय कितनी कठिनाई से लेखक ने इकट्ठा किया होगा ।
अनेक जीवनियों के नीचे फुटनोट है। इनमें अलग से लेखक ने परिश्रम किया है । अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों से बातचीत करके अनेक बार लेखक ने यह जानकारी जुटाई है। पृष्ठ 36 पर लेखक की एक पाद टिप्पणी है जो लाला हुकम चंद अग्रवाल जैन के बारे में है । यह अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के शहीद हैं । लेखक ने लिखा है “श्रीमती अनुपमा गर्ग -हुकम चंद जी की वंशज( पांचवी पीढ़ी- सुपौत्री) आप नीमच, मध्य प्रदेश में रह रही हैं ।इनसे फोन पर बात की तथा यह जानकारी इनके द्वारा प्रेषित की गई ।”
इस तरह केवल तथ्यों को एकत्र करने का ही नहीं अपितु जीवनियों के संबंध में जांच पड़ताल करने और उसके लिए अलग से सामग्री जुटाने के लिए भी लेखक का परिश्रम रहा है। यह लेखक की समर्पित भावना को दर्शाता है ।
पुस्तक में 18 अध्याय हैं जिनमें भारत के अलग-अलग राज्यों के स्वतंत्रता सेनानियों का वर्गीकरण किया गया है। इस प्रकार का स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि इससे अग्रवाल समाज के योगदान को रेखांकित करने में मदद मिल जाती है । बिखरे हुए संदर्भों को एक किताब में पिरोने का लेखक का प्रयास अत्यंत सराहनीय तथा साधुवाद के योग्य है ।आज अगर कोई यह चाहे कि उसे विभिन्न अग्रवाल स्वतंत्रता सेनानियों का विवरण प्राप्त हो जाए तो यह केवल अशोक कुमार गुप्ता जी की पुस्तक “अग्रवाल समाज और स्वाधीनता संग्राम” के माध्यम से ही सुलभ हो सकता है। पुस्तक में अट्ठारह सौ सत्तावन से स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रवालों के योगदान को दर्शाया गया है ।
अलग-अलग जातियों के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान का वर्गीकरण इस दृष्टि से आपत्तिजनक हो सकता है क्योंकि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने जाति के आधार पर आंदोलन में भाग नहीं लिया था। लेकिन कई बार यह प्रश्न उठता है कि अग्रवालों का कार्य तो केवल अपने व्यवसाय में लगे रहना तथा धन कमाना ही है । ऐसी पुस्तक इन सवालों का एक जवाब हो सकती है । इसी तरह अगर जाति के आधार पर अग्रवालों को स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान से विमुख रखा जाए तब भी इस प्रकार की पुस्तक एक सही उत्तर इस दृष्टि से बैठेगी क्योंकि इसमें बड़ी संख्या में अग्र वालों का योगदान है ।
ऐसी पुस्तकों का यह मतलब कदापि नहीं निकालना चाहिए कि केवल अग्रवाल समाज का ही स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान है अथवा जाति के आधार पर अग्रवाल इस आंदोलन में अग्रणी थे अथवा किसी जाति विशेष की तुलना में अग्रवालों का योगदान अधिक था । यह पुस्तक का गलत संदर्भ में उपयोग हो जाएगा । भावना यही होनी चाहिए कि अग्रवालों के पूर्वजों ने भी स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था ,अतः उसी भावना को आत्मसात करते हुए हमें भी उसी तरह सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित होना चाहिए ।
पुस्तक में कुछ पुराने जीवन चरित्र तो बहुत मार्मिक हैं। जगत सेठ रामजीदास गुड़वाले जिन्होंने अपना करोड़ों रुपया बहादुर शाह जफर के चरणों में स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया ,उनको चाँदनी चौक में फाँसी पर लटका दिया जाना– यह इतिहास का एक ऐसा प्रष्ठ है, जिसकी जानकारी कम ही लोगों को है। पुस्तक की एक विशेषता यह भी है कि इसमें अग्रवालों के योगदान पर प्रकाश तो डाला गया है किंतु जातिवाद की भावना किसी भी प्रष्ठ पर देखने में नहीं आ रही है । यही स्वतंत्रता आंदोलन की मूल भावना थी। यह भावना प्रणम्य है।

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