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10 Feb 2024 · 1 min read

अगर कुछ हो गिला तब तो बताऊं मैं,

ग़ज़ल
*****

अगर कुछ हो गिला तब तो बताऊं मैं,
मिरे दिल की भला क्यूँकर छुपाऊं मैं !

उसे तन-मन से माना है ख़ुदा अपना,
क्यों सब कुछ न उस पे ही लुटाऊं मैं !

मेरा हमदम, मेरा साया, रहा बनकर,
भला क्यूँ ना उसे जी भर सताऊं मैं !

किया उस के हवाले खुद को है मैंने,
तभी तो अब ज़ियादा हक जताऊं मैं !

अगर की है मुहब्बत मैंने उस से फिर,
क्यों ना हक से नखरे उसे दिखाऊं मैं !!
***
!
डी के निवातिया

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