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6 Jan 2023 · 1 min read

अक्लमंद –एक व्यंग्य

अक्लमंद

मेरे जैसी अक्लमंद दुनिया में
पैदा हो ही नहीं सकती।
यकीन है मुझे,
मानोगे नहीं,पता है मुझे।
लेकिन
अपनी अक्लमंदी मैं साबित कर सकती हूं।
कैसे????
जरा देखो तो
मैंने अपने हक की बात जब भी
करनी चाही,
मुझे पायल ,बिछुआ,सिंदूर में ‌
उलझा दिया गया।
मंगलसूत्र,पति परमेश्वर
समझा दिया गया।
और मैं इतनी अक्लमंद हूं,😄😄
कि
झट से मान गई।।
अक्लमंद औरतें
झगड़ा नहीं करती न😄😄
मैं अपने घर की मालकिन हूं
क्या हुआ
जो
खाना बनाना
बर्तन धोना
साफ सफाई
कपड़े। धोना
मसाले पीसना
नौकरों जैसे मैं काम करती हूं ‌।
कोई फर्क नहीं पड़ता,
आखिर घर भी तो मेरा है।
घर,
जी हां घर,😄😄
जिस पर मेरे नाम की कभी तख्ती नहीं
लेकिन घर मेरा है ।
हूं न मैं अक्लमंद
नौकरों का काम कर
मालकिन कहलाती हूं।,😄😄
रिश्तों को जोड़ती हूं
घर जोड़ती हूं
पैसा जोड़ती हूं
दो परिवारों को जोड़ती हूं
बस
एक गलती हो जाते
सब से पहले मुझे तोड़ा जाता है।
फिर भी मैं समझौता कर लेती हूं।
बस थोड़ी सी मार पीट ही तो है।
क्या हुआ??
घर तो बच गया न मेरा।।
अक्लमंदी है न मेरी
थोड़े से तिरस्कार के बदले
अच्छी औरत का नाम तो मिला मुझे
क्यों मानते हो न मुझे
अक्लमंद 😄😄😄🙏🙏

सुरिंदर कौर

Language: Hindi
92 Views
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