अकेला चांद

आज तो चांद भी अकेला है।
यादों का मगर लगा मेला है।
दिल किसी सिमत मानता ही नहीं
ये इश्क़ तो एक झमेला है।
छुपे हैं तारे आज बादलों के पार
बिछड़े चांद से है वो कई बार।
बहुत मुश्किल है इनको समझाना
मौज अपनी में वो अलबेला है।
सुरिंदर कौर
आज तो चांद भी अकेला है।
यादों का मगर लगा मेला है।
दिल किसी सिमत मानता ही नहीं
ये इश्क़ तो एक झमेला है।
छुपे हैं तारे आज बादलों के पार
बिछड़े चांद से है वो कई बार।
बहुत मुश्किल है इनको समझाना
मौज अपनी में वो अलबेला है।
सुरिंदर कौर