*अंतिम दिन का मेहमान (गीत)*

*अंतिम दिन का मेहमान (गीत)*
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आज कलैंडर बेचारा अंतिम दिन का मेहमान
(1)
कल से नहीं रहेगा जिसके सुबह संग थी आती
दिनचर्या आकार इसी को रही देखकर पाती
काम न कोई आने वाला इसके हुआ समान
(2)
याद आ रहा पहले दिन जब यह हँसता आया था
जब टाँगा इसको कितना आनंद अमित छाया था
सौ-सौ बार निहारी इसकी नई-नवेली शान
(3)
एक साल का इसका जीवन, यही आयु यह पाता
फिर अपना दायित्व कलैंडर नूतन को दे जाता
आने-जाने का यह क्रम ही जीवन की पहचान
आज कलैंडर बेचारा अंतिम दिन का मेहमान
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर( उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451