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16 May 2016 · 1 min read

तू, मैं और तनहाईयाँ…

ये रात का नशा
धुआँ धुआँ आशना
इश्क़ फैला सब जगह
डूबें हैं इसमें सभी
तू, मैं और तनहाईयाँ…

और कोई नहीं यहाँ
ये अकेला कारवाँ
घुम है मंज़िल का निशाँ
फिर भी चलते हैं
तू, मैं और तनहाईयाँ…

तेरे कदमों के निशाँ
चलता हूँ उन पर बारहा
सुनता हूँ तेरी धड़कनों की सदा
खामोशी है और कोई नहीं
बस तू, मैं और तनहाईयाँ…

–प्रतीक

Language: Hindi
3 Comments · 598 Views
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