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8 Jul 2021 · 1 min read

केहू फुलवा

केहू फुलवा से रहिया सजावे, केहू कांटा बिछावल करेला
चान कइसे के उतरी अँगनवा, लोग कनखी से ताकल करेला

कवनो आन्ही हो, कवनो बवण्डर, बार बांका न करि पाई ओकर
जेकरा माथे प माई के अँचरा, काल भी ओसे काँपल करेला

फोरि पइब न हमनी के घरवा, नांव लेके धरम-जाति के तूँ
ई ह गंगा अ जमुना के धारा, मइलि सब कर बहावल करेला

ए गो रँग ई हो जिनिगी के हउए, चारि दिन में तूँ घबड़ात बाड़
फूल खिलला से पहिले बगइचा, आके पतझर बहारल करेला

उनसे नेहिया लगवला से पहिले, मन में धरिह ‘असीम’ ए गो कहना
ई ह दीया के आदति पुरनकी, मीत बनि के जरावल करेला
© शैलेन्द्र ‘असीम’

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