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25 Apr 2022 · 1 min read

🌺🌺दोषदृष्टया: साधके प्रभावः🌺🌺

दोषदृष्टया भवने साधकस्य कृते बहु: आवश्यक:।श्रद्धा अपि स्यात् च दोषदृष्टि: अपि न स्यात्-“श्रद्धावन्तोSनसूयन्तः”(गीता-3/31),श्रद्धावाननसूयश्च(गीता 18/71)।दोषदृष्टयां भवने श्रद्धा क्षीणं भवति।प्रेम अपि न भवति।यदा कुत्रचित् दोष: पश्यति तु तत्र स्व न्यूनतां विधीयते।वयं स्वं न्यूनतां पश्यनस्य अधिकारः।
यदा कस्मिन् चित् अधिकं दोष: पश्यन्ति तु एतस्य संगति: अलं अनेन।यथा संगति: तथा सत्संग:।ईश्वरस्य च धर्मस्य च परलोकस्य च न मानकर्ता नास्तिकस्य संग: सर्वाधिक: पतनकारकः।एतादृशः एव ‘मदिरा’इति सर्वाधिकं पतन कर्त्री।सा मनुष्यस्य अन्तःकरणे स्थितः धर्मिकाणाम् भावानां परमाणुनि अंकुरान् नष्ट: करोति।परस्त्रीगमनापि आस्तिकं भावं नष्टः करोति।
अन्य: जन: दुराचारी स्यात् न स्यात् वा परं ‘सः दुराचारी अस्ति’-एषः वृत्ति तु पापाचारी भवति।दोषदृष्टया अनावश्यक रूपेण पापं भवति।निन्दा करणेन् अनावश्यक रूपेण पापं भवति।संत्सगेन स्वतंत्र रूपेण उद्धार भवति च कुसंगेन पतनं भवति।यथा, पाषाणं स्वतः एव गंगाया: प्रवाहेन सुवलययुक्त: सुंदरम च भवति।
सर्वे भगवतः सन्ति।यः सुष्ठु न सन्ति, ते भगवतः प्रेमीपुत्रा सन्ति, ये पालकस्य ममतामयीवृत्तया पिशुन: भवति।सत्संग कर्ता अपि एतादृशः त्रुटि: करोति, कियत् असदाचारी वार्ता-एषः न दृष्टवा एषः पश्यतु यत् त्रुटिकर्ता अपि सत्संग: कुर्वन्ति।कियत् उत्तमं वार्ता अस्ति।

©अभिषेक: पाराशरः

Language: Sanskrit
Tag: Quotation
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