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9 Sep 2016 · 1 min read

ग़ज़ल/गीतिका

एक ग़ज़ल

आई जब तू जिन्दगी हँसने लगी
तू मेरे हर सपने में रहने लगी |

धीरे धीरे तेरी चाहत बढ़ गई
देखा तू भी प्रेम में झुकने लगी |

जिन्दगी का रंग परिवर्तन हुआ
प्रेम धारा जान में बहने लगी |

राह चलते हम गए मंजिल दिखा
फिर भी जीना जिन्दगी गिनने लगी |

देखिये शादी के इस बाज़ार में
हाट में दुल्हन यहाँ बिकने लगी |

शमअ बिन यह तम डराने जब लगा
जिन्दगी को जिन्दगी छलने लगी |

दीप का लौ झिलमिलाते ही रहे
जब इक आँधी तेजी से बहने लगी |

कालीपद ‘प्रसाद’

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