ख़्वाबों में दुनिया अपनी, बनाए बैठे है
ख़्वाबों में दुनिया अपनी, बनाए बैठे है
दिल अपना गैरो से लगाए बैठे है
क़लम से दोस्ती जब से कर ली है
कोरे पन्नो में दर्द सजाए बैठे है
टूट गया कीमती खिलौना जब से
तब से अश्रु पलकों में सजाए बैठे है
बुझ गया है जो चिराग़ तूफानों में
वो रोशनी की आस उससे लगाए बैठे है
काटने आए है दरख़्त वो चूल्हा जलाने को
उस पर आशियाना अपना बनाए बैठे है
जिस्म तो मिट्टी में मिल जाना है
वो घर शीशे के बनाए बैठे है
डूब जाते है जहाज़ भी समुंद्री तूफानों में
क्यों वो सफिने को अपने डुबाने बैठे है
भूपेंद्र रावत
22।09।2017