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7 Sep 2017 · 1 min read

ख़्वाबों को ही अब हम अपना बताते है

ख़्वाबों को ही अब हम अपना बताते है
हकीकत में वो हमसे दूर ही नजर आते है

मोती अब आँखों के खुद ही सूख जाते है
जख्म में अब वो नमक छिड़क जाते है

दर्द में हमकों यूँ ही तन्हा छोड़ जाते है
रात हम अपनी अब यूँ ही बिताते है

खुद तो हँसते है हमारी बेबसी में
और हमे रोता हुआ छोड़ जाते है

जख्म देते है, तडपाते है
मरहम अब हम खुद लगाते है

रूठ कर रूख मोड़ चले जाते है
बात करने के लिए वो तरसाते है

सामने नजर हमे आकर तस्सली दे जाते है
देखकर अब हमको नज़र अंदाज कर जाते है

मिलन की ड़ोर हमेशा काट जाते है
पयाम छोड़ खुदको वयस्त बताते है

हिचकी हमे तो आती नही अब
हमें यादों में अपनी यूँही तड़पाते है

नाम मेरा अब वो भूल जाते है
लब मेरे उनका नाम ही रटते जाते है

कल तक जो हंसाते थी शामो-शहर
वो अब बस शामो-शहर रुलाते है

खुद की तिश्र्गी बुझा कर
भूपेंद्र को प्यासा छोड़ चले जाते है

भूपेंद्र रावत
07/09/2017

1 Like · 321 Views
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