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31 Jul 2016 · 1 min read

सावन भादों जितना बरसे

मुक्तक
व्याकुल प्रिय से मिलने को मन, करता है प्रभु से मनुहार।
उर अंतस की दीवरों से, बार बार रिसता है प्यार।
मेघों के अति प्रेमामृत से, बुझी नहीं धरती की प्यास।
सावन-भादों जितना बरसे, धधक रहे उतने अंगार।
अंकित शर्मा’ इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)

Language: Hindi
238 Views
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