Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 May 2022 · 5 min read

सच्चा प्यार

कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं,जो सबके दिल को छू जाते हैं। गढकर एक नई कहानी सबको नई सीख दे जाते हैं ।यह कहानी सुस्मिता की है।वह एक मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की है। जैसा जीवन आम तौर पर मध्यम परिवार की लड़की बिताती है, उसका भी बिता था।पढाई करते हुए वह स्नातक कर चुकी थी। अब पिता उसके शादी के लिए लड़के ढूँढ रहे थे।तभी किसी जान पहचान वाले ने एक लड़के का सुझाव दिया।सुष्मिता के पिता वहाँ गये तो उन्हें परिवार और लड़का दोनों बहुत पसंद आया । लड़का इंजनियर था और भाई में भी अकेला। दोनों परिवार आपस मैं बात-चीत कर शादी के लिए तैयार हो गए। धूमधाम से सुष्मिता की शादी संपन्न हो गई। वह जब ससुराल आई तो यहाँ बहुत जोरदार ढंग से उसका स्वागत हुआ। वह बहुत खुश थी।उसे ससुराल में इतना जो सम्मान मिल रहा था। वह भी अपने व्यहवार से ससुराल में सबको खुश कर रही थी और ससुराल वाले उसे ढेर सारा प्यार दे रहे थे। इस तरह प्यार से जीवन व्यतीत करते उसके शादी के एक साल बीत चुके थे।अब वह इस परिवार में काफी घूल-मिल गई थी।
सबके साथ हिलमिल कर रहने लगी थी। पर ईश्वर को शायद कुछ और मंजूर था।एक दिन सुष्मिता के पति मोहन की तबियत काफी खराब हो गई। डॉक्टर के पास ले जाया गया।जाँच हुई तो पता चला की कैंसर का अंतिम पड़ाव में है। यह सुनकर तो मानों पूरे परिवार पर बिजली गिर गई। उन्हें यह समझ में ही नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हो गया।सुष्मिता भी इस बात से पूरी तरह से टूट गई थी और मोहन के माता-पिता तो सदमें में थे।डॉक्टर से पूछा गया तो उसने कहा ज्यादा से ज्यादा तीन से चार महीने है इनके पास।मोहन इन सब बातों को सुन रहा था और यह सब बात सुनकर वह पूरी तरह टूट चूका था फिर भी वह परिवार को कमज़ोर पड़ता देख खुद को मजबूत दिखा रहा था। इसी तरह दर्द के साथ सबका दिन बितते जा रहा था और मोहन की तबियत भी दिनोंदिन खराब होती जा रही थी। तभी मोहन ने माता-पिता और सुष्मिता को अपने पास बुलाया और सुष्मिता की दूसरी शादी की बात की।
यह सुनकर तीनों लोग आश्चर्य चकित रह गए। सुष्मिता मोहन के इस बात को नकारते हुए बाहर निकल कर रोने लगी। मोहन के माता-पिता भी उठ रहे थे कि मोहन ने उनका हाथ पकड़ लिया और बोला की आप दोनों मुझे वचन दें की आप सुष्मिता की शादी अवश्य कराएंगे और उसे बेटी मानकर विदा करगें।मोहन ने अपने माता-पिता को इस बात के लिए राजी कर लिया। अब वह एक अच्छे लड़के की तलाश में जुट गया था तभी उसे अपने प्रिय दोस्त राज की याद आई।उसने फोन कर राज को अपने पास बुलाया। राज को सारे परिस्थतियों से अवगत कराया और फिर सुष्मिता से शादी करने के लिए उसके सामने प्रस्ताव रखा। पहले तो राज ने इस बात से इनकार किया लेकिन फिर मोहन के समझाने पर मान गया।राज के हाँ करते ही मोहन ने अपने माता-पिता को राज के परिवार से मिलने भेज दिया ।चूँकि दोनों परिवार एक-दूसरे को पहले से जानते थे इसलिए किसी को कोई आपत्ति नही हुई।
मोहन अपने सामने ही सुष्मिता की सगाई कराना चाहता था इसलिए उसने झट से एक दिन निकलवाया और सबको सगाई के लिए राजी कर लिया।हाँलाकि सुष्मिता इस बात से राजी नही थी फिर भी मोहन ने उसे अपने प्यार का वास्ता देकर मना लिया।गिनेचुने लोगो के बीच सगाई का काम संपन्न हो गया। मोहन जान रहा था की मेरे पास ज्यादा समय नहीं है, इसलिए लिए वह अपना काम जल्दी-जल्दी निपटा रहा था।मोहन की तबीयत अब पहले से ज्यादा खराब हो गई थी।वह फिर से अस्पताल मै भर्ती होने जा रहा था,तब उसने सुष्मिता को अपने पास बुलाया और बोला!मेरे माँ-पिता अब तुम्हारे माँ-पिता है।इनका बेटी बनकर तुम ख्याल रखना।गुस्सा भी करें तुम पर, तो इन से नाराज न होना और तुम अपने नये जीवन में खुश रहना।उन्हें नाराज होने का मौका न देना।इतना सुनते ही सुष्मिता फूट-फूट कर रोने लगी और मोहन से बोली तुम ऐसा न बोलो,सब ठीक हो जाएगा।इधर मोहन के माता-पिता भी यह सारी बातें सुन रहे थे।यह सब सुनकर उनके आँखो के आँसु थम नही रहे थे।अपने बेटे की ऐसी हालत देखकर वह बिल्कुल टूट चुके थे।इतने में राज ऐंबुलेंस लेकर आया और मोहन को अस्पताल ले जाने लगा। साथ में सब लोग चल रहे थे।मोहन अस्पताल में भर्ती हो गया।इलाज सिर्फ औपचारिकता थी। नौ दिन बीत गए थे अस्पताल में।लोग अपने दिल को थामें बैठे हुए थे तभी डॉक्टर आ कर बोले -मोहन जी अब नही रहे। इतना सुनते ही सब फूट-फूट कर रोने लगे।मोहन के पार्थिव शरीर को घर ले जाया गया । वहाँ पर कुछ रिश्तेदारों ने दाह-संस्कार की तैयारी की। सारी विधियों के साथ मोहन का दाह-संस्कार खत्म हो गया।सभी रिश्तेदार अपने घर को चले गए। राज बीच-बीच में आकर परिवार से खोज-खबर ले रहा था।सब अपने गम में डूबे हुए दिन काट रहै थे।ऐसा करते हुए एक साल बीत गया।इन एक सालों मै सुष्मिता ने अपने सास-ससुर का काफी ख्याल रखा।उनकी सारी जरूरतों का ध्यान वह खुद रखती थी जैसे समय पर खाना खिलाना, समय पर दवा देना इत्यादि। यह सब देखकर मोहन के माता-पिता अपने बहू से बहुत खुश थे।वे उसे अपनी बेटी तरह प्यार करने लगे थे।अब उन्हें मोहन को दिये गए वचन को पूरा करना था।इसलिए उन्होंने राज के परिवार से मिलकर शादी का दिन निकाल कर शादी की तैयारी मैं लग गए। अपनी बेटी की तरह उन्होंने शादी के सारे रस्म रिवाज उन दोनों ने खुद निभाया।शादी बहुत सुंदर ढंग से सम्पन्न हो गई। इस दौरान सबको मोहन की याद आ रही थी। लोग सब यही बोल रहे थे देखो भले ही मोहन और सुष्मिता का रिशता एक साल का कच्चा था लेकिन उसका प्यार सौ प्रतिशत सच्चा था ।तभी तो वह सुष्मिता के लिए इतना बड़ा कदम उठाकर गया था।वह उदास न रहे जीवन भर, इसलिए प्यार भर कर गया था। विदाई की घड़ी आ गई सुष्मिता इस घर से विदा होकर जाने लगी तभी फूट-फूट कर रो रही मोहन की माँ कहा -मैंने तुम्हें बेटी माना है।तुम याद रखना कि तुम्हारा एक नहीं दो मायके हैं। आते- जाते रहना।पहले से रो रही सुष्मिता गर्दन को हाँ में हिलाते हुए गले लग कर जोर-जोर से रोने लगी।कुछ लोगो ने उन दोनो को अलग करते हुए गाड़ी मॆं बैठाकर उसे विदा कर दिया।लेकिन एक सच्चे प्यार ने एक नये रिश्ते को जन्म दे दिया।आज सुष्मिता अपने मायका में कम और इस नये मायका में ज्यादा रहती है। आज स्थिति यह है कि राज और सुष्मिता मोहन के माता-पिता से बहुत प्यार करते हैं और उनका पूरा ख्याल रखते है। आज मोहन के माता-पिता उसके इस कदम की सराहना करते हुए नही थकते हैं। सुष्मिता भी मोहन के इस एहसान का जिक्र करते हुए नही थकती है। आज सब अपने जीवन में आगे बढ गए है, पर कोई भी मोहन के इस त्याग को नही भूला हैं।

~अनामिका

Language: Hindi
4 Likes · 2 Comments · 517 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
दवा और दुआ में इतना फर्क है कि-
दवा और दुआ में इतना फर्क है कि-
Santosh Barmaiya #jay
माशूका नहीं बना सकते, तो कम से कम कोठे पर तो मत बिठाओ
माशूका नहीं बना सकते, तो कम से कम कोठे पर तो मत बिठाओ
Anand Kumar
"गमलों में पौधे लगाते हैं,पेड़ नहीं".…. पौधों को हमेशा अतिरि
पूर्वार्थ
दिल को एक बहाना होगा - Desert Fellow Rakesh Yadav
दिल को एक बहाना होगा - Desert Fellow Rakesh Yadav
Desert fellow Rakesh
"सन्देशा भेजने हैं मुझे"
Dr. Kishan tandon kranti
बेटियां
बेटियां
Madhavi Srivastava
वन  मोर  नचे  घन  शोर  करे, जब  चातक दादुर  गीत सुनावत।
वन मोर नचे घन शोर करे, जब चातक दादुर गीत सुनावत।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
* गीत मनभावन सुनाकर *
* गीत मनभावन सुनाकर *
surenderpal vaidya
वर्तमान गठबंधन राजनीति के समीकरण - एक मंथन
वर्तमान गठबंधन राजनीति के समीकरण - एक मंथन
Shyam Sundar Subramanian
If life is a dice,
If life is a dice,
DrChandan Medatwal
Jo Apna Nahin 💔💔
Jo Apna Nahin 💔💔
Yash mehra
पयसी
पयसी
DR ARUN KUMAR SHASTRI
आँखों से नींदे
आँखों से नींदे
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
फिर से आयेंगे
फिर से आयेंगे
प्रेमदास वसु सुरेखा
अपनी चाह में सब जन ने
अपनी चाह में सब जन ने
Buddha Prakash
मुहब्बत सचमें ही थी।
मुहब्बत सचमें ही थी।
Taj Mohammad
अहा! लखनऊ के क्या कहने!
अहा! लखनऊ के क्या कहने!
Rashmi Sanjay
समय पर संकल्प करना...
समय पर संकल्प करना...
Manoj Kushwaha PS
मोबाइल
मोबाइल
लक्ष्मी सिंह
जी रही हूँ
जी रही हूँ
Pratibha Pandey
☄️💤 यादें 💤☄️
☄️💤 यादें 💤☄️
Dr Manju Saini
बचपन
बचपन
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
विश्वकप-2023
विश्वकप-2023
World Cup-2023 Top story (विश्वकप-2023, भारत)
*चलती का नाम गाड़ी* 【 _कुंडलिया_ 】
*चलती का नाम गाड़ी* 【 _कुंडलिया_ 】
Ravi Prakash
नारी हूँ मैं
नारी हूँ मैं
Kavi praveen charan
नाम हमने लिखा था आंखों में
नाम हमने लिखा था आंखों में
Surinder blackpen
माँ तुम्हारे रूप से
माँ तुम्हारे रूप से
Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
2678.*पूर्णिका*
2678.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Saso ke dayre khuch is kadar simat kr rah gye
Saso ke dayre khuch is kadar simat kr rah gye
Sakshi Tripathi
हंसी मुस्कान
हंसी मुस्कान
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
Loading...