वो हमें दिन ब दिन आजमाते रहे।
गज़ल
212….212…..212…..212
वो हमें दिन ब दिन आजमाते रहे।
जो कहा हम वो करके दिखाते रहे।
ज़ख्म पर जख्म देते रहे उम्र भर,
कैसे कैसे हमें वो सताते रहे।
तन बदन टूटकर मेरा जर्जर हुआ,
बोझ हम फिरभी उनका उठाते रहे।
दर्द गम ने हमें आ के घेरा कभी,
गीत गज़ले सदा गुनगुनाते रहे।
जो हमारे थे वो भी गये छोड़कर,
रात दिन वो हमें याद आते रहे।
या खुदा साथ गैरों ने दे तो दिया,
गम में सब दूर रिश्ते व नाते रहे,
प्रेम किस को करें कोई प्रेमी मिले,
बस इसी सोच में दिन बिताते रहे।
……..✍️ सत्य कुमार प्रेमी