काव्य की आत्मा और औचित्य +रमेशराज
नज़ाकत को शराफ़त से हरा दो तो तुम्हें जानें
"पकौड़ियों की फ़रमाइश" ---(हास्य रचना)
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
अपना ही ख़ैर करने लगती है जिन्दगी;
"अस्थिरं जीवितं लोके अस्थिरे धनयौवने |
हम दुनिया के सभी मच्छरों को तो नहीं मार सकते है तो क्यों न ह
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
जीवन चक्र
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
रात अज़ब जो स्वप्न था देखा।।
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
वो बीते हर लम्हें याद रखना जरुरी नही
*आ गये हम दर तुम्हारे दिल चुराने के लिए*
स्वयं द्वारा किए कर्म यदि बच्चों के लिए बाधा बनें और गृह स्
ज़िंदगी को मैंने अपनी ऐसे संजोया है
*अखबारों में झूठ और सच, सबको सौ-सौ बार मिला (हिंदी गजल)*
तेरे प्यार के राहों के पथ में
singh kunwar sarvendra vikram
गुम सूम क्यूँ बैठी हैं जरा ये अधर अपने अलग कीजिए ,
भेड़ चालों का रटन हुआ
Vishnu Prasad 'panchotiya'
आतंकवाद सारी हदें पार कर गया है