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27 May 2022 · 1 min read

रिश्ते

कहीं मसरूफियत तेरी न बने रिश्ता ए तबाही
रिश्ते भी चाहते है तवज्जो अदायगी ।

फुरसत में कभी बैठो बयां हाल-ए-दिल करो
होगी तसब्वुर दिल में ख़ामख्वाह ताज़गी ।

इस नामुराद वक्त से चुरा ले पल दो पल
बेफ़िक्र होके कल से जी ले आज ज़िन्दगी ।

बख्शी खुदा ने जो तमाम रिश्तों को नेअमते
तहज़ीब से संवार ले रिश्तों की सादगी |

तफ्शीश में लगा है तू मुनाफ़े कहां हुए ?
दिल में सुकूं रख, कर खुदा की बन्दगी ।

मुकम्मल कहां हुई किसी की सारी चाहते
फुरसत नहीं तू जाने क्या है तेरी तृष्णगी ।

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