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6 Oct 2016 · 1 min read

रंग हरा यदि किन्तु….: छंद कुण्डलिया.

केसरिया सविता उगे, केसरिया हो अस्त.
हरियाली उस सूर्य से, जिसमें सारे मस्त.
जिसमें सारे मस्त, हरा ही मन को भाये.
सूरज से ही चाँद, चमकता कौन बताये?
बनें सनातन भ्रात, द्वेष का क्योंकर दरिया?
रंग हरा यदि किन्तु, मूल पावन केसरिया..

–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’

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