— यह कैसी विडंबना —
यह कैसी विडंबना है
कैसा यह खौफ्फ्नाक मंजर है
जहाँ सब चीज का होता विनाश
आज क्यूं यह सब का हाल है
रोते बिलखते परिवार का दुःख
देखा न जाए कैसा यह हाल है
क्या से क्या होने लगा देश में
क्यूं सब का घर यूं बेहाल है
जमीन पर हाहाकार हो गया
पाताल भी आकर अब रो गया
नही थम रही आंसूओं की डोर
यह कैसा हुआ सब घनघोर है
किस बात की सजा मिल रही
कैसे यह सब के साथ दगा कर रही
रोक नही सका कोई किसी को
मौत पर बस कफ़न का ही शोर है
अजीत कुमार तलवार
मेरठ