Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
31 Mar 2022 · 1 min read

*!* मेरे Idle मुन्शी प्रेमचंद *!*

कष्ट स्वयं महसूस किया, वे कष्ट की भाषा लिखते थे
पढ़े – लिखे मेधावी होकर, साधारण से दिखते थे
कष्ट स्वयं महसूस………..
1) पुरुष नहीं वे आइना थे, सामाजिकता लाते थे
दु:ख से ओतप्रोत समाज में, लेख से जाने जाते थे
गाँव – शहर के दुखड़ों से वे, स्वयं भी बहुत बिलखते थे
कष्ट स्वयं महसूस……….
2) लेख थे उनके क्रांतिकारी, अंग्रेजी डर जाते थे
भय था उनको सिंह के जैसा, पर कुछ ना कर पाते थे
लेख लिखे सबको पढ़वाये, वे क्रांति अलख ही चाहते थे
कष्ट स्वयं महसूस……….
3) भरा था जीवन कष्टों से, पर सामाजिकता न छोड़ी
बचपन में माता गुजरी, फिर पिता ने भी सांसें तोड़ी
फिर भी अविचल होकर, लेखन में झण्डे लहरते थे
कष्ट स्वयं महसूस……….
4) मैं भी उनके लेख पढ़ा, मैं खूब हंसा जी भर रोया
दिल को बड़ा सुकून मिला, मैं कई दिनों तक था सोया
उनके लेख सब जन-जन को हीरे- मोती से रहते थे
कष्ट स्वयं महसूस………
लेखक:- खैमसिंह सैनी
Mob.no. :- 9266034599

Language: Hindi
8 Likes · 2 Comments · 502 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
कविताश्री
कविताश्री
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
सहयोग आधारित संकलन
सहयोग आधारित संकलन
Dr. Pradeep Kumar Sharma
*माता दाता सिद्धि की, सौ-सौ तुम्हें प्रणाम (कुंडलिया)*
*माता दाता सिद्धि की, सौ-सौ तुम्हें प्रणाम (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
जरूरत से ज्यादा मुहब्बत
जरूरत से ज्यादा मुहब्बत
shabina. Naaz
सावन मास निराला
सावन मास निराला
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
यह कैसा आया ज़माना !!( हास्य व्यंग्य गीत गजल)
यह कैसा आया ज़माना !!( हास्य व्यंग्य गीत गजल)
ओनिका सेतिया 'अनु '
इंसान होकर जो
इंसान होकर जो
Dr fauzia Naseem shad
कभी
कभी
Ranjana Verma
ईश्वर
ईश्वर
Shyam Sundar Subramanian
हज़ारों साल
हज़ारों साल
abhishek rajak
अभिनय से लूटी वाहवाही
अभिनय से लूटी वाहवाही
Nasib Sabharwal
कहमुकरी
कहमुकरी
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
मोहब्बत से जिए जाना ज़रूरी है ज़माने में
मोहब्बत से जिए जाना ज़रूरी है ज़माने में
Johnny Ahmed 'क़ैस'
दोस्ती से हमसफ़र
दोस्ती से हमसफ़र
Seema gupta,Alwar
#हृदय_दिवस_पर
#हृदय_दिवस_पर
*Author प्रणय प्रभात*
अपने कदमों को बढ़ाती हूँ तो जल जाती हूँ
अपने कदमों को बढ़ाती हूँ तो जल जाती हूँ
SHAMA PARVEEN
"शब्दकोश में शब्द नहीं हैं, इसका वर्णन रहने दो"
Kumar Akhilesh
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
यह आत्मा ही है जो अस्तित्व और ज्ञान का अनुभव करती है ना कि श
यह आत्मा ही है जो अस्तित्व और ज्ञान का अनुभव करती है ना कि श
Ms.Ankit Halke jha
एक श्वान की व्यथा
एक श्वान की व्यथा
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
लैला लैला
लैला लैला
Satish Srijan
*अज्ञानी की कलम*
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
प्रकृति को त्यागकर, खंडहरों में खो गए!
प्रकृति को त्यागकर, खंडहरों में खो गए!
विमला महरिया मौज
कहता है सिपाही
कहता है सिपाही
Vandna thakur
जिंदगी में सिर्फ हम ,
जिंदगी में सिर्फ हम ,
Neeraj Agarwal
2760. *पूर्णिका*
2760. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ऐसे कैसे छोड़ कर जा सकता है,
ऐसे कैसे छोड़ कर जा सकता है,
Buddha Prakash
दर्पण दिखाना नहीं है
दर्पण दिखाना नहीं है
surenderpal vaidya
किसी महिला का बार बार आपको देखकर मुस्कुराने के तीन कारण हो स
किसी महिला का बार बार आपको देखकर मुस्कुराने के तीन कारण हो स
Rj Anand Prajapati
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
Loading...