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26 Jun 2016 · 1 min read

मालती सवैया

मुक्तक
संग भले दिखते जन हैं मन में पर मेल मिलाप नहीं है।
वे विष हाथ लिये कहते मन में अपने कोई’ पाप नहीं है।
घात सदा करते छुपके पहचान इन्हें बगुले सम हैं ये।
आज मनुष्य स्वभाव यही यह रंच भी’ व्यर्थ प्रलाप नहीं है।
अंकित शर्मा’ इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)

Language: Hindi
1 Comment · 444 Views
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