Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Feb 2022 · 8 min read

मानव छंद , विधान और विधाएं

#मानव छंद, 14 ~14 मात्रा का एक चरण , चार. चरण, , चारो चरण या दो दो चरण समतुकांत।

मात्रा की बाँट ~ बारह + दो है।
बारह मात्रा में पूरित जगण छोड़कर तीन चौकल हो सकते हैं,
या एक अठकल एक चौकल हो सकता है,
या एक चौकल एक अठकल हो सकता है

इस छंद में आप ~#मूलछंद. #मुक्तक. #गीतिका #गीत
लिख सकते हैं , पर पदकाव्य लिखना उचित नहीं है क्येंकि पद काव्य के एक चरण में यति पूर्व विषम चरण में सम चरण से कुछ अधिक मात्राएं होना चाहिए , जवकि इस छंद में बराबर मात्राएं हैं।

मानव छंद में चरणांत दो है ( कुछ उदाहरण दो लघु के भी मिलते हैं, जो सृजन कारों ने अपने काव्य सृजन की मांँग अनुसार एक दीर्घ को दो लघु कर लिखा है |
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मैथलीशरण गुप्त जी ने साकेत में और प्रसाद जी ने आंँसू काव्य में इस छंद के विविध प्रयोग किए हैं | सखी छंद (आंँसू छंद) हाकलि छंद , विद्या छंद‌ भी 14 ~14 मात्रा के हैं , जिसमें मामूली‌ गठन अंतर है |
इन कवियों के मानव छंद में भी कहीं चारों चरणों में तुकांत साम्य है, तो कहीं 2. और 4 (सम चरणों ) में तुक साम्य है | इसके अलावा और भी चरणों के तुकांत प्रयोग किए हैं , पर वह प्रचलित नहीं हुए हैं और हम भी उन प्रयोगों को परे रखकर , चार चरण तुकांत या सम चरण तुकांत ही मान्य कर रहे हैं |
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
हमारे उदाहरण ~

मिलकर आगे बढ़ जाते , यदि बातें हों सब सच्ची |
गगरी मन की पकती है , चाहे जितनी‌ हो कच्ची ||

जगह- जगह पर रस घोले, बोले मुख से मधु वाणी |
रहता सुख से इस जग में, तभी सुभाषा वह प्राणी ||

देश हमारा सुंदर है , कल~कल बहती है गंगा |
गुरुवर कहते इस जल से , रखिए मन को जी चंगा ||

विश्व पटल भी यह जाने , है भारत. अद्भुत न्यारा |
नवल सुनहरी धूप रहे , ऐसा है वतन हमारा ||

भारत में पावनता है , यह जग पूजा करता है |
बहती कल-कल गंगा है, सिर भी सबका झुकता है ||

मात- पिता भी पुजते हैं , सब मानें वह मंदिर है |
यही सभी यह माने अब , ईश्वर उनके ,अंदर है ||

फाँकें दिन में दस बातें , निशि में फाँके जो‌ दुगनी |
पता न चलता उनका है, कब कर लेते वह तिगुनी ‌ ||

मानव जलभुन जो रहते, कभी न आगे बढ़ते हैं |
डेरा दुख का घर रखते, सज्जन लखकर कुढ़ते हैं ||

उलटी- पुल्टी वाणी से, जो मन घायल करते हैं |
पागल खुद ही रहते हैं , दूजों का सुख हरते हैं ||

रहता रस कब उस घर में , विष बेलों की हो छाया |
मिलता उसको बो़या ही , कड़वे रस की है माया ||
===============================
मुक्तक 28 मात्रा में (आधार मानव छंद )

देखा हमने डाली में , पुष्प लटक जब जाते हैं |
गिरकर वह उड़ते जाते , काम नहीं वह आते‌ हैं |
जीवन जब यह ढह जाता, कभी ढलानों पर यारो ~
उपकारी तन बन जाए ,नाम अमर तब पाते हैं |

कोई चलकर राहों में , पक्की राह बनाता है |
सेवा कैसे करनी है , सबको यह बतलाता है |
छूता उसको दर्प नहीं है , सदा रहे वह उपकारी –
आदर्शां के वह झंडे , दुनिया में फहराता है |

लोगों ने भी दुनिया में , कुछ करने को जब ठानी |
ठोकर जग ने मारी है , फेरा मेहनत पर पानी |
साहस से वह पथ चलते, जो मानव सेवाकारी ~
देखा मंजिल पर उनको , वह ठोंकें अमिट निशानी |

लिखा भाग्य ने जो तुमको , बैठे नहीं निहारो जी |
साहस रखकर संंकट को , अवसर पर ललकारो जी |
अच्छे कर्म जहाँ होगें , बने‌ आपकी वह पूँजी ~
उसके ही आलम्वन से , जीवन सदा सँवारो जी ||

माना हमने दुनिया में , लगा हुआँ आना‌-जाना |
कर्मो की गणना करती, किसका है कौन ठिकाना |
संकट में निज तन डालें ,कौन विसर्जन को चाहे ~
ऐसा अवसर जब आए , गाओ साहस का गाना |

लिखा पढ़ी है उसके घर , कब तक जग में रहना है |
कर्मो की गणना से भी , सुख-दुख रहकर सहना है |
घबड़ाकर भी कभी नहीं , कभी पराजय. स्वीकारो ~
कदम. बढ़ाओ हल करने , यही हमारा कहना है |

मानव छंदाधारित मुक्तक

मुक्तक ), आधार -द्विगुणित मानव /हाकलि छंद
(14 -14 मात्रा ) 4+4+4+ 2

छिपे छिपकली मंदिर में , कीड़ा खाती जाती है |
पाप न उसके कटते है , शरण न प्रभुवर पाती है |
दान करे नर कितना भी , ‌यदि करता पाप कमाई ~
करनी उसकी देती फल , नियति यही बतलाती है |

आज मनुज की हालत है ,पाप हमेशा करता है |
फल भी अच्छा पाने को , लालायित वह रहता है‌ |
कौन उसे समझाता है , खुद को प्यारे धोखा है –
चखता है वह करनी फल , बैठा आहें भरता है |

कर्म जहाँ पर खोटे है , दूरी सभी बनाते हैं |
पापी माया रहती है , पास न सज्जन आते हैं ||
जहाँ कुटिलता छाई है , सार नहीं है बातों में –
वहाँ दिखावा होता है , छल के लड्डू खाते हैं |

सुभाष ‌सिंघई जतारा ( टीकमगढ़) म० प्र०

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

14 मात्रिक मुक्तक ( आधार मानव छंद )

डाली पर हम जाते हैं |
सूखे पुष्पों को पाते हैं |
पवन वेग से उडते हैं ~
काम नहीं वह आते‌ हैं |

जीवन यह ढह जाता है |
काम नहीं कुछ आता है |
उपकारी जीवन जिनका ~
नाम अमर वह पाता है |
~~~~~~~~~~~~~~
अपदांत गीतिका( आधार मानव छंद )

भारत में पावनता है , यह जग पूजा करता है |
बहती कल~कल गंगा है, सिर भी सबका झुकता है ||

मात- पिता भी पुजते हैं , हर घर. ही अब मंदिर है ,
यही सभी हम मानें जग , ईश्वर निज में रहता है |

उल्टी- पुल्टी वाणी से, जो भी मन घायल करता ,
पागल खुद ही रहता है , दूजों का सुख हरता है |

रहता रस कब उस घर में , विष बेलों की छाया हो ,
मिलता उसको बो़या ही , कड़वा रस तन मलता है |

कहे सुभाषा लोगों से , जीवन है चार दिनों का ,
जिसका मन पावन रहता , वह फूलों सा खिलता है |
================================

गीत. (आधार मानव छंद )

बोली जिसकी मीठी है , जग में सब कुछ पाता | (मुखड़ा)
दया धर्म का पालन भी , वह जीवन में अपनाता || (टेक)

करुणा रहती अंदर है , पुष्पों की खिलती डाली | (अंतरा )
जग को वह बगिया जाने,खुद को माने वनमाली ||
सत्य चरण की गंगा वह , पग पग पर रोज बहाता | (पूरक)
धर्म सदा वह जीवन में ,हरदम ही कुछ अपनाता || (टेक)

छूता उसको दर्प नहीं, सदा रहे वह उपकारी | (अंतरा )
आदर्शों के वह झंडे , फहराता है सुखकारी ||
सेवा कैसे करनी है , सबको है वह बतलाता | (पूरक)
धर्म दया का पालन भी , वह जीवन में अपनाता || (टेक)

साहस से वह पथ चलता , बनता है सेवाकारी | (अंतरा)
देखा मंजिल पर उसको , सदा जीतता है पारी ||
चर्चा उसकी होती है , सदा गुणी वह कहलाता | (पूरक)
धर्म दया का पालन भी , वह जीवन में अपनाता || (टेक)
~~~~~~~~~~

चारों चरणों में तुकांत भी साम्य रख सकते है
(इस तरह से भी छंद लिखना रोचक है , सृजन पर रोक नहीं है , मान्य ही है , यह कवि का चयन है , चार चरण तुुकांत रखना है या सम चरण तुकांत रखना है |
उदाहरण ~

मिलकर आगे बढ़ पाते | सुख के दिन भी आ जाते |
भाव जहाँ हो यदि सच्चा | घड़ा पकेगा‌ तब कच्चा ||

जगह- जगह पर रस घोलें,| मुख से मधु वाणी बोलें ||
रहना सुख से इस जग में, | मिले सफलता हर मग‌ में ||

बहती कल – कल गंगा है | मन को रखती चंगा है | |
देश हमारा सुंदर है | ईश्वर सबके अंदर है ||

विश्व पटल भी यह जाने ,| भारत. को अनुपम माने ||
धुन्द यहाँ पर छटती है | पूर्ण कलुषता मिटती है ||

भारत में जो रहता है | ईश्वर पूजन करता है ||
सभी जगत को घर जाने | मित्रों को अपना माने ||

मात- पिता भी पुजते है | बेटे के सँग सजते है ||
घर में पूजित मंदिर है | , ईश्वर इनके ,अंदर है ||

पिता हमारे छाया है | जिनसे तन की का़या है ||
माता तीरथ साया है | देवी जैसी माया है ||

हाथ हमारा भाई है | बहिना एक कलाई है ||
घर में बूड़ी ताई है , समझों तब शहनाई है ||

जलभुन कर जो कुढ़ते हैं | कभी न आगे बढ़ते हैं ||
दुख की पुस्तक पढ़ते हैं | दोष सभी पर मढ़ते हैं ||

बात न अच्छी जो माने | स्वाद न कोई वह जाने ||
जग भी उनको पहचाने | हैं जिनके गलत ठिकाने ||

मंदिर के हित वह आकर | रूखी सूखी ही खाकर ||
समझाते घर- घर जाकर | लोग धन्य उनको पाकर |||

फाँकें दिन में जो दुगनी | करे रात में वह‌ तिगनी | |
पता न उसका चलता है | क्या क्या सिर पर मलता है ||

उलटी- पुल्टी वाणी से, | जो लड़ते हर प्राणी से | |
पागल खुद ही रहते है , | दूजों का सुख हरते है ||

रहता रस कब उस घर में ,| बेल भरा हो विष घर में |
कड़वे रस की माया में | कब सुख रहता छाया में ||

=======================
14. मात्रिक मुक्तक ( आधार मानव छंद )

कोई नव पथ पाता है |,
पक्की राह बनाता है |
सेवा कैसे करना है ~
सबको यह बतलाता है |

नहीं दर्प की‌ बीमारी |
सदा रहे जो उपकारी -|
दुनिया उसको पहचाने ~
सतपथ पर करे सवारी |

कुछ करने को जब ठानी |
फिरता मेहनत पर पानी |
मानव. जो सेवाकारी ~
देते वह अमिट निशानी |
≠===============================
चरण गीतिका ( आधार मानव छंद )
सदा कर्म को पहचाने ~

विश्व पटल भी यह जाने, भारत. को अनुपम माने |
सुंदर सब रहें तराने , सदा कर्म. को पहचाने ||

मिलकर आगे बढ़ते है , मंजिल पर ही चढ़ते है ,
यहाँ लगन के सब गाने, सदा कर्म को पहचाने |

जगह- जगह पर रस घोलें, मुख से मधु वाणी बोलें,
पाते है सही ठिकाने , सदा कर्म को पहचाने |

बहती कल – कल गंगा है, मन को रखती चंगा है ,
हम. होते नहीं पुराने , सदा कर्म को पहचाने |

भारत में जो रहता है, प्रभु का पूजन करता है |,
सदा जगत को अपनाने , सदा कर्म को पहचाने |

मात- पिता भी पुजते है बेटे के सँग सजते है ,
सेवा करे न कुछ पाने , सदा कर्म. को पहचाने |

पिता हमारे छाया है , जिनसे तन की का़या है ,
माता तीरथ ही माने , सदा कर्म को पहचाने `|

हाथ हमारा भाई है , बहिना एक कलाई है ,
अनुपम घर में सब दाने , सदा कर्म को पहचाने |
================================

मानव छंद में गीत ~

बोली मीठी जो गाता , जग में सब कुछ है पाता | मुखड़ा
रहती घर में सुख साता , दया धर्म जो अपनाता ||टेक

करुणा का रहता माली , पुष्पों की खिलती डाली |अंतरा
वह सदा जीतता पाली , कभी न रहता है खाली ||
गंगा पावन वह पाता , पग पग पर रोज नहाता |पूरक
रहती घर में सुख साता , दया धर्म जो अपनाता ||टेक

दर्प न उसके मन रहता , सदा सत्य ही वह कहता |अंतरा
आदर्शा के पथ चलता , कर्म सदा ही सुख फलता ||
सेवा से कैसे नाता , सबको है वह बतलाता | पूरक
रहती घर में सुख साता , दया धर्म जो अपनाता ||टेक

रहता है वह उपकारी , बनता है सेवाकारी |अंतरा
मंजिल पर करे निहारी , वह सदा जीतता पारी ||
चर्चा में सब पर छाता , सदा गुणी वह कहलाता |पूरक
रहती घर में सुख साता , दया धर्म जो अपनाता ||टेक
~~~~~~~~~~~~~
मानव छंद

कहा कृष्ण ने गीता में |
पावन परम पुनीता में ||
कर्म सदा फल फलते है |
छाया बनकर चलते है ||

भीष्म कहें अब कृष्ण सुनो |
शर शैया का राज गुनो ||
षष्टम भव पिछला लेखा |
कहीं न दोषी निज देखा ||

कष्ण कहे भव सात‌‌ चखो‌ |
तितली छेदन हाल लखो ||
कौतुक तेरा आज यहाँ |
प्रतिफल देखे समय‌ यहाँ ||

हमने थी यह कथा सुनी |
कर्म किया की व्यथा गुनी ||
कर्म सदा अच्छे करना |
पड़ता खोटो को भरना ||

कर्ण सभी ने नाम सुना |
दानी का भी काम गिना ||
जब अभिमन्यू मरता रण |
दान न आया तब उस क्षण ||

पानी दान न दे पाया |
पूरा था पुण्य गँवाया ||
कर्ण बना तब. बेचारा |
ग‌या इसी में वह मारा ||

एक कथा अनुसार
(भीष्म सात भव पहले राजकुमार थे व बाग में तितलिया पकड़कर उनमें कांटे चुभाने का कौतुक किया था | दूसरे किए गए पुण्य से छै भव निकल गए , पर द्रौपदी चीर हरण देखने पर सभी पुण्य नष्ट हो गए व तितलिया छेदन का कर्म फल भी मृत्यु के समय शर शैया के रुप में आया था |
दानवीर कर्ण मरणासन्न प्यासे अभिमन्यु को मांगने पर भी पानी का दान न दे सके और इस कर्म से उनका सारा पुण्य क्षीर्ण हो गया था

सुभाष सिंघई

आलेख उदाहरण ~ सुभाष सिंघई , एम ए हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र , निवासी जतारा ( टीकमगढ़ ) म० प्र०

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 2447 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
जग में अच्छे वह रहे, जिन पर कोठी-कार (कुंडलिया)*
जग में अच्छे वह रहे, जिन पर कोठी-कार (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
#आज_का_दोहा
#आज_का_दोहा
*Author प्रणय प्रभात*
माँ तेरी याद
माँ तेरी याद
Dr fauzia Naseem shad
हर वर्ष जला रहे हम रावण
हर वर्ष जला रहे हम रावण
Dr Manju Saini
*खत आखरी उसका जलाना पड़ा मुझे*
*खत आखरी उसका जलाना पड़ा मुझे*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
*.....थक सा गया  हू...*
*.....थक सा गया हू...*
Naushaba Suriya
अलिकुल की गुंजार से,
अलिकुल की गुंजार से,
sushil sarna
Emerging Water Scarcity Problem in Urban Areas
Emerging Water Scarcity Problem in Urban Areas
Shyam Sundar Subramanian
🙏😊🙏
🙏😊🙏
Neelam Sharma
तू मेरे सपनो का राजा तू मेरी दिल जान है
तू मेरे सपनो का राजा तू मेरी दिल जान है
कृष्णकांत गुर्जर
"नींद का देवता"
Dr. Kishan tandon kranti
वही पर्याप्त है
वही पर्याप्त है
Satish Srijan
आज का चिंतन
आज का चिंतन
निशांत 'शीलराज'
तेरी सुंदरता पर कोई कविता लिखते हैं।
तेरी सुंदरता पर कोई कविता लिखते हैं।
Taj Mohammad
* मंजिल आ जाती है पास *
* मंजिल आ जाती है पास *
surenderpal vaidya
फ़साना-ए-उल्फ़त सुनाते सुनाते
फ़साना-ए-उल्फ़त सुनाते सुनाते
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
इंसान चाहे कितना ही आम हो..!!
इंसान चाहे कितना ही आम हो..!!
शेखर सिंह
गर्मी की छुट्टियां
गर्मी की छुट्टियां
Manu Vashistha
परिवार
परिवार
Sandeep Pande
मां ने भेज है मामा के लिए प्यार भरा तोहफ़ा 🥰🥰🥰 �
मां ने भेज है मामा के लिए प्यार भरा तोहफ़ा 🥰🥰🥰 �
Swara Kumari arya
नशा
नशा
Mamta Rani
आयी थी खुशियाँ, जिस दरवाजे से होकर, हाँ बैठी हूँ उसी दहलीज़ पर, रुसवा अपनों से मैं होकर।
आयी थी खुशियाँ, जिस दरवाजे से होकर, हाँ बैठी हूँ उसी दहलीज़ पर, रुसवा अपनों से मैं होकर।
Manisha Manjari
चेहरा नहीं दिल की खूबसूरती देखनी चाहिए।
चेहरा नहीं दिल की खूबसूरती देखनी चाहिए।
Dr. Pradeep Kumar Sharma
राजस्थानी भाषा में
राजस्थानी भाषा में
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
ग़ज़ल सगीर
ग़ज़ल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
चाँद और इन्सान
चाँद और इन्सान
Kanchan Khanna
जब भी तेरा दिल में ख्याल आता है
जब भी तेरा दिल में ख्याल आता है
Ram Krishan Rastogi
आओ चले अब बुद्ध की ओर
आओ चले अब बुद्ध की ओर
Buddha Prakash
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
कभी छोड़ना नहीं तू , यह हाथ मेरा
कभी छोड़ना नहीं तू , यह हाथ मेरा
gurudeenverma198
Loading...