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2 Jun 2022 · 1 min read

मांडवी

आओ सुनाऊं एक अनजानी विरहनी की गाथा
अप्रतिम सौंदर्य की थी वह मल्लिका
कुशध्वज चंद्रभांगा की वह थी लाड़ो शहजादी
रामायण की नायिका की थी वह अनुजा
नार वह विदुषी और गौरा की अनन्य भक्तिनी
प्रतिछाया थी वह अपनी भगिनी जानकी की
वटवृक्ष सीता चरित्र का जन जन करता गुणगान
वह पौध भी पली उसी बरगद के तले
कोई मनुज भी उसे न देख और न जान पाया
मैथिली शरण ने उसे किया गुमनामी से बाहर
उसके त्याग और विरह का किया खूब बखान
कैकई के वरदानों पर बनी रही दृष्टा तटस्थ
साध्वी जैसे हृदय ने विरक्त भाव ही जताया
सीताराम के हित को ही सर्वोपरि उसने माना
देख पति भरत का राम समर्पण सम्मान ही जताया
नंदीग्राम की पर्णकुटी में साध्वी बन जीवन बिताया
आत्मनियंत्रण बल की थी वह स्वामिनी शहजादी
उस विरहिनी का दर्द कोई मनुज समझ न पाया
इतिहास के पन्नों पर कभी न स्थान अपना बनाया
जैसे सैनिक का शौर्य नायक के ही हिस्से आया
उसकी कुर्बानियों पर मैं बलिहारी हुई हूं जाती
रामायण ने भी उस विरहनी को न अपनाया

Language: Hindi
2 Likes · 542 Views
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