नहीं कमजोर नारी
नहीं कमजोर नारी वो दिल से सोचती है
इन्हीं साँसों से अपनी ये जीवन रोपती है
नहाती दर्द में है किसी से पर न कहती
मिले हर एक गम को सदा चुपचाप सहती
भरे मुस्कान मुख पर जगत में डोलती है
नहीं कमजोर नारी वो दिल से सोचती है
बनाती घर को घर ये खिलाती हैं बहारें
दीवारों में न आने कभी देती दरारें
बनाकर प्रीत बंधन ये रिश्ते जोड़ती है
नहीं कमजोर नारी वो दिल से सोचती है
तभी तो नाम इसका समर्पण त्याग दूजा
करो सम्मान इसका यही सच्ची है पूजा
यही भारत की माटी भी सबसे बोलती है
नहीं कमजोर नारी वो दिल से सोचती है
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद(उ प्र)