प्रीति की, संभावना में, जल रही, वह आग हूँ मैं||
#विधा-आदित्य छन्द आधारित गीत
#विधान-मापनीयुक्त मात्रिक छन्द, क्रमागत दो चरण समतुकांत होना अनिवार्य,
5,14,19 वीं मात्रा पर यति एवं 28 वीं पर विराम
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वेदना, की हर व्यथा में, व्यक्त हो, वह राग हूँ मैं|
प्रीति की, संभावना में, जल रही, वह आग हूँ मैं||
मै विरह, की व्यक्तना बन, नित्य ही, जलने लगा हूँ|
प्रेम की, परिकल्पना में, बर्फ सम, गलने लगा हूँ|
प्रेम मे, छल से छला उस, बोध का, वैराग हूँ मैं|
प्रीति की, संभावना में, जल रही, वह आग हूँ मैं||
द्वेष का, मारा हुआ मैं, कल्पना, में खो रहा हूँ|
दम्भ की, अर्थी सजा मैं, लाश निज, की ढो रहा हूँ|
रंग बिन, बेरंग दिखता, अब वहीं, बस फाग हूँ मै|
प्रीति की, संभावना में, जल रही, वह आग हूँ मैं||
प्रेम की, सरिता बहाने, को नहीं, है नीर बाकी|
उर विरह, से है घवाहिल, अब नहीं, कुछ धीर बाकी|
वर्तिका, उस आश जैसी, अधजली, अनुराग हूँ मैं|
प्रीति की, संभावना में, जल रही, वह आग हूँ मैं||
है पड़ी, संवेदना मृत, नेह ने, आधार खोया|
भावना, से रिक्त उर में, है सभी, ने शूल बोया|
वक्ष में, जो है समाहित, उस गरल, का भाग हूँ मैं|
प्रीति की, संभावना में, जल रही, वह आग हूँ मैं||
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’