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4 Sep 2017 · 1 min read

पिता

हा मैं पिता हूँ
अपने बच्चों को संस्कार देना चाहता हूँ
उनको एक सुखमय हंसी -खुशी संसार देना चाहता हूँ
मैं चाहता हूँ वो पढें
हर मुश्किल से दूर निरंतर आगे बढें।
बच्चों के खातिर मुश्किलों से लड़ना जानता हूँ
इसे ही अपना सौभाग्य मानता हूँ
विकट दर विकट परिस्थिति के सम्मुख अड़ जाता हूँ
चोट खाता हूँ गीरता हू किन्तु आगे बढ जाता हूँ
बच्चों के लिए मुश्किलों से लड़ना ।
मैने अपने पिता से जाना है
यहीं कारण जो प्रथम गुरु उन्हें ही माना है
उनके चरणों को अपना संसार जानता हूँ
उन्हें हीं अपना भगवान मानता हूँ।
मै प्यारा करता हूँ अपने बच्चों से किन्तु दिखाता नहीं
जीवन में कुछ भी गलत करें ऐसा उन्हें सिखाता नहीं।
मैं चाहता हूँ वे संस्कारी बने, वैभवशाली हों
मैं चाहता हूँ वे संघर्षशील व आज्ञाकारी हों
खलनायक नहीं वो नायक बनें
स्थिति जैसी भी हो उससे लड़ने लायक बने
बस कारण इतना ही जो मैं रुग्ण हूँ कठोर हूँ
बच्चों के लिए दारुण दुख मैं सहता हूँ
चुप ही रहता हूँ
नहीं किसी से कहता हूँ।
बच्चो की खुशी में खुश हो जाता हूँ
उन्हीं के सुख में अपना सुख मै पाता हूँ।
बच्चों का सुखद भविष्य ही अपना संसार है
मेरा हीं नहीं “सचिन” हर पिता का यहीं तो अरमान है।।
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
4/9/2017

Language: Hindi
423 Views
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