Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Dec 2021 · 2 min read

धर्म बला है…?

धर्म बला है…?
°°°°^°°°°
कोई कहता, ये धर्म बला है,
कोई कहता, धर्म अफीम या शोला है।
पर सच्चाई बयां करती ये दूनियांँ ,
ये न तो बला है और न शोला है।
धर्म बदनाम हुआ, यूँ ही इस जग में,
जबसे इसमें किसी ने जहर घोला है…

देखा है कहीं ऐसा भी जग में,
मां – बाप, अम्मा या वालिद,
चाह्ता जो अधर्मी सुत हो,
धर्मपरायण नहीं हो जीवन में।
धर्म की खातिर जान गंवाते ,
धर्म सपूतों का वसंती चोला है।

धर्म बदनाम हुआ, यूँ ही इस जग में,
जबसे इसमें किसी ने जहर घोला है…

धर्म प्रतिष्ठित भारतभूमि ये तो,
सदियों से ही विश्वगुरु कहलाती।
बुद्ध का सत्य, महावीर का तप है,
श्रीराम का त्याग,श्रीकृष्ण लीला है।
धर्म सहिष्णु, धर्म करूणा है,
धर्म के बिना तो सबकुछ सूना है।

धर्म बदनाम हुआ, यूँ ही इस जग में,
जबसे इसमें किसी ने जहर घोला है…

धर्म को घृणा का औजार बनाकर,
सत्ता स्वार्थ का हथियार बनाकर,
रोपा बीज किसने है यहाँ पर।
भाई-भाई को खून कराकर,
बाप-श्वसुर को खंजर चुभोकर,
इतिहास पलटने से दिखता है।

धर्म बदनाम हुआ, यूँ ही इस जग में,
जबसे इसमें किसी ने जहर घोला है…

हमने तो किसी का न, दिल ही दुखाया,
औरों को भी गले ही लगाया,
लूटपाट न कभी आतंक मचाया।
एक-एक कर था, जो राज्य गंवाया,
अपने महल में ही पद्मिनी बनकर,
सतीत्वरक्षार्थ जौहर पट खोला है ।

धर्म बदनाम हुआ, यूँ ही इस जग में,
जबसे इसमें किसी ने जहर घोला है…

अपने हिंद का साम्राज्य देख लो ,
औरों का विस्तार देख लो।
नहीं धर्म का प्रलोभन देते,
धर्म का ढाल बन, साजिश न रचते।
अपने हक को ही, सब दिन से लड़ते,
काहे को फिर ये मुख खोला है।

धर्म बदनाम हुआ ,यूँ ही इस जग में,
जबसे इसमें किसी ने जहर घोला है…

मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २६ /१२ / २०२१
कृष्ण पक्ष , सप्तमी , रविवार
विक्रम संवत २०७८
मोबाइल न. – 8757227201

Language: Hindi
5 Likes · 8 Comments · 1099 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from मनोज कर्ण
View all
You may also like:
इश्क़ में
इश्क़ में
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
आईने में ...
आईने में ...
Manju Singh
*प्रश्नोत्तर अज्ञानी की कलम*
*प्रश्नोत्तर अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी
दम है तो गलत का विरोध करो अंधभक्तो
दम है तो गलत का विरोध करो अंधभक्तो
शेखर सिंह
कहना तुम ख़ुद से कि तुमसे बेहतर यहां तुम्हें कोई नहीं जानता,
कहना तुम ख़ुद से कि तुमसे बेहतर यहां तुम्हें कोई नहीं जानता,
Rekha khichi
*दीपक सा मन* ( 22 of 25 )
*दीपक सा मन* ( 22 of 25 )
Kshma Urmila
■ ज़रूरत...
■ ज़रूरत...
*Author प्रणय प्रभात*
"ख्वाहिश"
Dr. Kishan tandon kranti
सारी व्यंजन-पिटारी धरी रह गई (हिंदी गजल/गीतिका)
सारी व्यंजन-पिटारी धरी रह गई (हिंदी गजल/गीतिका)
Ravi Prakash
जिंदगी के लिए वो क़िरदार हैं हम,
जिंदगी के लिए वो क़िरदार हैं हम,
Ashish shukla
सपनो का शहर इलाहाबाद /लवकुश यादव
सपनो का शहर इलाहाबाद /लवकुश यादव "अज़ल"
लवकुश यादव "अज़ल"
जीवन की यह झंझावातें
जीवन की यह झंझावातें
Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
वह आवाज
वह आवाज
Otteri Selvakumar
"सुस्त होती जिंदगी"
Dr Meenu Poonia
गुजरे हुए वक्त की स्याही से
गुजरे हुए वक्त की स्याही से
Karishma Shah
बस्ते...!
बस्ते...!
Neelam Sharma
तुम कहते हो की हर मर्द को अपनी पसंद की औरत को खोना ही पड़ता है चाहे तीनों लोक के कृष्ण ही क्यों ना हो
तुम कहते हो की हर मर्द को अपनी पसंद की औरत को खोना ही पड़ता है चाहे तीनों लोक के कृष्ण ही क्यों ना हो
$úDhÁ MãÚ₹Yá
चचा बैठे ट्रेन में [ व्यंग्य ]
चचा बैठे ट्रेन में [ व्यंग्य ]
कवि रमेशराज
हम करें तो...
हम करें तो...
डॉ.सीमा अग्रवाल
दिल में दबे कुछ एहसास है....
दिल में दबे कुछ एहसास है....
Harminder Kaur
प्रेरणा
प्रेरणा
Dr. Pradeep Kumar Sharma
3092.*पूर्णिका*
3092.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
कहां गए तुम
कहां गए तुम
Satish Srijan
हम वो फूल नहीं जो खिले और मुरझा जाएं।
हम वो फूल नहीं जो खिले और मुरझा जाएं।
Phool gufran
कुंडलिया - रंग
कुंडलिया - रंग
sushil sarna
पुण्य आत्मा
पुण्य आत्मा
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
स्वरचित कविता..✍️
स्वरचित कविता..✍️
Shubham Pandey (S P)
हुनर का नर गायब हो तो हुनर खाक हो जाये।
हुनर का नर गायब हो तो हुनर खाक हो जाये।
Vijay kumar Pandey
*****गणेश आये*****
*****गणेश आये*****
Kavita Chouhan
Don't let people who have given up on your dreams lead you a
Don't let people who have given up on your dreams lead you a
पूर्वार्थ
Loading...