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16 Sep 2017 · 1 min read

==तेरी महिमा न्यारी ==

पानी रे पानी तेरे रूप निराले हैं।
कल कल करता जलप्रपात हो तो,
दूध के से बहते धारे हैं।
देवालय में चढ़े ईश पर तो,
गुंजित होते शिवाले हैं।
बारिश की बूंदें बन बरसे,
तो खेत खलिहान हरियाले हैं।
अधिक बरसे तो जल प्लवन से,
उफनते नदियाँ व नाले हैं।
विरहिणी के चक्षु से बरसे,
तो लोचन नीर के प्याले हैं।
वाष्पीकरण बन उड़ जाते गर,
तो बनते बदरा घनेरे काले हैं।
अतिवृष्टि सी आती बाढ़ें तब तो,
जीवन सबका ही राम के हवाले है।
अल्प वृष्टि हो तेरी तो अकाल से,
जीवन के भी पड़ते लाले हैं।
पानी तेरी महिमा न्यारी।
तेरी इक- इक बूंद है अमूल्य,
तेरे कतरे – कतरे हमें जीवन देने वाले हैं।

——-रंजना माथुर दिनांक 16/07/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©

Language: Hindi
529 Views
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