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7 Aug 2016 · 1 min read

तेरी नज़र के इशारे बदल भी सकते हैं,,

======ग़ज़ल=====

तेरी नज़र के इशारे बदल भी सकते हैं,
मेरे नसीब के तारे बदल भी सकते हैं,

मैं अपनी नाव भवंर से निकाल लाया हूँ,
मगर ये डर है किनारे बदल भी सकते हैं,

अमीरे शहर की तक़रीर होने वाली है,
सहर तलक ये नज़ारे बदल भी सकते हैं,

ये दौर वो है कि गैरों का क्या कहें साहिब,
हमारे हक़ में हमारे बदल भी सकते हैं,

~~~~अशफ़ाक़ रशीद~~~~~

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