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18 Mar 2019 · 1 min read

डूबता_आतंकिस्तान

डूबता_आतंकिस्तान
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जहां सिसकती बचपन दम तोड़े , व्याभिचार के अड्डों में ,
जहां बच्चे झोंके जाते हों , आतंक के खड्डो में,
जहां बच्चियां वेश्यालय में हर दिन झोंकी जाती हों ,
आतंकपरस्तों के ठिकानों में, जबरन फेंकी जाती हों ;
सोचें किस जनमानस को भयंकर प्रलाप नहीं होगा … ,
किस सभ्य समाज को इस दुर्दिन का संताप नहीं होगा !

लेकिन प्रकृति के लुटेरों को हर्ष , क्षणिक विषाद कहां होता ;
वैश्विक संकेतों से भर जाता पेट , कटोरा याद कहां होता …!

✍️ आलोक पाण्डेय

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