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8 Jun 2022 · 2 min read

✍️वो “डर” है।✍️

✍️वो “डर” है।✍️
————————//
एक अनचाहा
अंजानासा
थोड़ा जाना
पहचानासा..!
मुझे वो बचपन
से ही मिलता था,
दादा दादी के
कहानियों में
नाना नानी की
जुबानियो में,
माँ के लाडली
फटकार में
पिता की
समझदारी की
डाँट में..!
गुरु के
सावधानी भरी
चेतावनी में…!

ईश्वर की श्रद्धा
के लिये भी
वो मन के कोने में
बैठा रहता था।
अल्लाह की इबादत
के लिये भी
जहेन के किसी
हिस्से में
मौजूद रहता था।।
वो रहता था साथ
इसीलिये
सारे पाठशाला के
नित्य गृहपाठ
पुरे होते थे…!
वो बुरे दोस्तों के
संगति से
बचाता था ।
वो अच्छे दोस्तों को
खोने से भी
रोकता था ।

जैसे जैसे
मैं बड़ा
होते गया
वैसे वैसे
वो मुझसे
दूर जाता रहा
वो फिर कभी कभी
अंजाने की तरह
मिलता था
कुछ समय
कुछ पल के लिये..!

जब बच्चे
बड़े हो रहे थे
तब वो कुछ
समय साथ ही रहाँ,
उनकी परवरिश में
वो बीमार पड़ जाते
तो उनकी देखभाल में,
स्कूल से लौटने से
लेकर उनके
अच्छे भविष्य का
निर्माण होने तक…
वो रहता था
कही रूह में बसा।

कभी किसी
भीड़ में
हादसों से
गुजरता हुवा
देखा मैंने उसे…

अब तो वो
व्यापार की भी
चीज़ बन गया..
ढोंगी बाबा,
साधु,संत,महंत
सब अपनी
तिजोरी के लिए
इस्तेमाल करते है।
राजसत्ता के लोभी
अपने खुर्ची और
प्रान,प्रतिष्ठा के लिए
भी मंच पर से
जनता को इसकी
प्रचिती कराते है।।
अब वो
सच बनकर
झूठ की
बुनियाद पे
चैनलोसे रोज
प्रसारित होता है
और दहलाते रहता है
देश की चारो
दिशाओं को…!
इतिहास की
बर्बरता से
वर्तमान के युद्ध तक
ये इंसान को
भविष्य के लिए
आगाह करता है..!

एक अनचाहा
अंजानासा
थोड़ा जाना
पहचानासा..!
जो बसा है
दिल के अंदर
भूतकाल से भविष्य तक
ये साथ रहेगा
हर वक़्त..! हर पल..!!
इसका होना भी जरुरी…
इसका ना होना भी मज़बूरी…
वो “डर” है।
————————————-//
✍️”अशांत”शेखर✍️
08/06/2022

Language: Hindi
2 Likes · 8 Comments · 475 Views
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