जो तेरी गलती बिसरा ना सके
“जो तेरी गलती बिसरा ना सके…!!!”
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वो मां वो प्यारी सी मां
साए में जिसके तू पला बढ़ा
खेला कूदा और मजे किया
आज जहां भी पहुंचा है तू
बस मां की ही तो बदौलत है
उसकी रहमत का कर्ज तो तू
ता उम्र चुका ना पाएगा
बिक भी जाएगा गर तो भी
एहसान मां का ना उतार पाएगा
क्या स्वार्थ था उसका जो उसने
तुझ नटखट को इंसान बनाया
क्या चाहा था उसने बदले में
सोना चांदी मिल जाएगा?
क्या महल दुमहले क़दमों पर
उसके आकर बिछ जाएंगे?
कोई चाह ना थी उसकी ममता में
एक इस चाहत के परे ओ मां
पढ़ लिख कर बस लाल ये उसका
जग में नाम कुछ कमा जाए
उमर के इस पड़ाव में
क्या दिया है तूने मां को अपनी
एक वीरान दुनिया
एक सूना पन और
एक खालीपन जीवन में
अंधियारे में डूबी रातें
गुमनाम जिंदगी का साया और
घुटन भरा जीवन सारा
होते ही बड़ा तूने उसके
सुहाग से उसे जुदा कर डाला
बांटा ऐसे मां और बाप को
अस्तित्व तक उनका नकार डाला
मजबूर किया उन दोनों को
जुदा जुदा रहने को तूने
चंद पैसों की खातिर ही तो
तूने आपस में मिलकर
उनके प्यार का सौदा कर डाला
खून के आंसू रोने को
मजबूर किया है तूने उनको
आया अहम जो पैसों का तो
ये भी तुझसे हो ना सका
जिनने तुझको इस जीवन में
आज यहां पहुंचाया है
झूठी शान और इज्जत की खातिर
वृद्धाश्रम तक तूने उन्हें पहुंचाया है
भूल गए वो दिन बचपन के
जब जरा सी सर्दी होती थी
रात रात भर पिता ही थे जो
कांधे पे लेकर सुलाते थे
तब नहीं सोचा कभी उन्होंने
वे क्यूं ऐसा करते है
क्यूं किसी कृच में डालकर
लालन पालन किया तेरा
और वही मां जिसको तूने
तिल तिल मरने मजबूर किया है
दूध हल्दी का बनाकर
रात रात भर पिलाती थी
ठंडे पानी की पट्टी रखकर
ताप वो तेरा उतारती थी
और कभी कभी तो
राई नून से नजर भी
उतारा करती थी
कहते है चरणों में मां बाप के
स्वर्ग बसा हुआ रहता है
स्वर्ग की राहों को फिर क्यों तूने
हाथों से अपने बंद कर डाला
ईश्वर तुल्य मां और बाप को
खून के आंसू पिला डाला
ऐसा क्या मांग लिया था उनने
जो तुझको इतना दर्द हुआ है
क्यूं लोभ और अहंकार के कारण
उनका जीवन नरक बना डाला
अब भी वक्त है संभल जा दोस्त
जा उनको लेकर आजा घर
इतना छोटा दिल नहीं उनका
जो गलती तेरी बिसरा ना सकें।
जो गलती तेरी बिसरा ना सकें।।
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट (म प्र)