Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Sep 2017 · 4 min read

जय माँ एवं जय मातृ भूमि

जय माँ एवम मातृ भूमि

पांडिचेरी की शांत स्वच्छ सड़कों से होता हुआ काफिला गुरुदेव अरविनदों आश्रम की ओर बढ़ चला । अरविनदों आश्रम पहुँच कर शांत सौम्य वातावरण का अनुभव किया तो ऐसा लगा माँ कह रही है जहां तुम्हें पहुंचाना चाहती थी वह गंतव्य यही है । यही है मंजिल इसके पश्चात तुम्हें किसी मार्गदर्शक की अवश्यकता नहीं पड़ेगी । अपने सद्गुरु को पहचानो , और स्वयम मे महसूस करो । ये वो अटूट रिश्ता है जिससे जुड़ने पर मानवता सौभाग्यशाली होती है । इंसान को रूहानीयत मिलती है । अदम्य साहस एवम असीम संभावनाओ को समेटे अरब सागर के तट पर सद्गुरु अरविंद की समाधि स्थल है । उसके पास जो भी जाता है और मौन रह कर साधना करता है , तो उसे एक अद्भुत शांति का अनुभव होता है । सभी पर्यटक समाधिस्थल पर आकर साधना मग्न रहते हैं । उसके पश्चात हम समाधिस्थल से पुस्तकालय की ओर अग्रसर होते है ऋषि की अनेक रचनाएँ वहाँ संग्रहित हैं । उसमे एक रचना माँ पर भी बिक्री के लिए उपलब्ध है । मैं उसे क्रय करना चाहता हूँ । परंतु साध्वी मुझे चुनौती देते हुए कहती है कि माँ को समझना बहुत कठिन है । यह प्रयास असंभव है । मैंने भी दृढ़ निश्चय करते हुए माँ के आशीर्वचन प्राप्त करने का निश्चय कर लिया है । मैं उस पुस्तक को क्रय कर लेता हूँ । मैंने अध्ययन मे पाया कि उसमे कुछ भी ऐसा नहीं था जो मेरी जानकारी से परे था । परंतु साध्वी कि वो रहस्यमय मुस्कान व चुनौती मुझे हैरान कर रही थी घुमड़ घुमड़ कर मेरे मन मस्तिष्क को हैरान कर रही है । मै सौभाग्यशाली हूँ कि मुझे माँ का प्यार –दुलार , आशीर्वाद और आनंद मयी गोद प्राप्त हुई है । मुझे माँ का कदम –कदम पर मार्गदर्शन भी प्राप्त होता रहा है । स्वावलंबन कि जो परिभाषा मुझे माँ ने सिखायी , उससे मै कहीं भी अकेला नहीं पड़ा हूँ , निराश नहीं हुआ हूँ । बल्कि उसके साथ मेरा रिश्ता और प्रगाढ़ हुआ है । माँ का वो सहारा जो कमजोर या व्यथित होने पर मुझे मिला है , वह अद्वितीय है । माँ को आज भी मै अंतर्यामी और सहज मानता हूँ । यह माँ का स्वाभाविक गुण है । जो अपने शिशु के मन के भावचेहरे से ही पढ़ लेती है , जब तक शिशु आनंद से क्रीडा न करने लगे प्रयासरत रहती है । मानव का मनोविज्ञान माँ से बढ़ कर कौन जान सकता है। त्याग और सहिष्णुता कि मूर्तिमयी माँ बचपन से ये गुण अपनी प्यारी माँ से सीखती है। मर्यादित रह कर उससे बढ़ कर कौन मर्यादा पुरषोतम को जान सकता है । जीवन के हर क्षण मे सुख का संचार करने वाली बच्ची जीवनपर्यंत एक ऐसे गुरु का चरित्र निभाती है , जो हर बच्चे को निस्वार्थ भाव से मिलता है । उनके स्वभाव के अनुरूप वह अपना किरदार बखुभी निभाती है । और जब बृध और अशक्त हो जाती है तभी कुछ अपेक्षा करती है । इस अवस्था मे पुत्र का उत्तरदायित्व है कि अपनी माँ कि देखभाल अच्छे से करे । क्योंकि यह उसका जन्मसिद्ध अधिकार बनता है । जिस बच्ची ने जीवन भर भ्राता- माता – पिताएवम सगे सम्बन्धियो के लिएप्रेम – त्याग –सहिष्णुता सन्मार्ग का रास्ता दिखाया , पत्नी के रूप मे पति को आजीवन सहारा दिया , बच्चों का पालन –पोषण कर उन्हे स्वावलंबी , स्नेही , मृदुभाषी व अहंकार रहित होने की शिक्षा दी , वो माँ आज वृद्ध होने पर , पति का वियोग होने पर अपने बच्चो से राहत की उम्मीद करती है तो उसमे गलत ही क्या है ?
हमे अपने माता –पिता के अनुसार अपने आप को ढालनाचाहिए ना कि माता –पिता से ये अपेक्षा करनी चाहिए कि वे उनके अनुकूल व्यवहार करे माता –पिता बच्चो के मन माफिक आचरण नहीं कर सकते हैं । उनके आशीर्वचनों ने हमारे ओठों पर हंसी बिखेरी है । मित्रो मे सम्मान की हैसियत बनाई है । और मानवता की सेवा की अलख जगाई है । आज भारत माता सर्वव्यापी , समदृष्टा व कालजयी है । उसके प्रति हमारी सम्मान की भावना सर्वथा उचित है । इसलिए कहा गया है —–“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी । “ अर्थात माँ औरजन्म भूमि स्वर्ग से भी बढ़ कर है ।
मातृत्व का नैसर्गिक सुख केवल मानव मे ही नहीं पशुओं एवम जानवरों मे भी होता है । वे भी अपने जन्मजात शिशुओ की देखभाल वैसे ही करते हैं जैसे एक माँ को करना चाहिए । सतर्क ,सजग ता एवम सुरक्षा का भाव दिलाती माँ अपने बच्चो को अपने पैरो पर खड़ा होने तक देखभाल करती है । उन्हे आजीविका का साधन अर्थात शिकार करने की कला भी सिखाती है । और वैसे ही निश्चिंत हो जाती जैसे हमारी माँ अपने बच्चो के पैरो पर खड़े होने पर निश्चिंत हो जाती है । तब बच्चो का भविष्य सुरक्षित हो जाता है । इसलिए माँ को देवी की श्रेणी मे रखा गया है । हम इस मूर्ति मयी माँ की कहानी पुराणों –ग्रंथो मे सुनते आ रहे हैं । जो सर्वव्यापी , समदर्शीएवम स्नेह मयी है । जो परहित एवम निहित स्वार्थ मे छुपे दंभ एवम छल कपट , वासना का मर्दन करने के लिए क्रोध करती है । दुष्टो का संहार करती है । ऐसा वात्सल्य रस अद्भुत अकथनीय महसूस होता है । ईश्वर की यह रचना वास्तव मे अप्रतिम , अद्वितीय व नैसर्गिक है । अत :भारत माँ की जय हो या स्वयं की माँ की , इनकी हमेशा जय जयकार होनी ही चाहिए ।

लेखक –डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव

Language: Hindi
Tag: लेख
3 Likes · 529 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
View all
You may also like:
अच्छाई बनाम बुराई :- [ अच्छाई का फल ]
अच्छाई बनाम बुराई :- [ अच्छाई का फल ]
Surya Barman
साइकिल चलाने से प्यार के वो दिन / musafir baitha
साइकिल चलाने से प्यार के वो दिन / musafir baitha
Dr MusafiR BaithA
गुरु गोविंद सिंह जी की बात बताऊँ
गुरु गोविंद सिंह जी की बात बताऊँ
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मेरी चाहत
मेरी चाहत
umesh mehra
सुंदरता विचारों व चरित्र में होनी चाहिए,
सुंदरता विचारों व चरित्र में होनी चाहिए,
Ranjeet kumar patre
मेहनत
मेहनत
Dr. Pradeep Kumar Sharma
"बड़ा सवाल"
Dr. Kishan tandon kranti
आजाद पंछी
आजाद पंछी
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
खिल उठेगा जब बसंत गीत गाने आयेंगे
खिल उठेगा जब बसंत गीत गाने आयेंगे
Er. Sanjay Shrivastava
शुभ रात्रि
शुभ रात्रि
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
आस्था और भक्ति की तुलना बेकार है ।
आस्था और भक्ति की तुलना बेकार है ।
Seema Verma
आदिम परंपराएं
आदिम परंपराएं
Shekhar Chandra Mitra
*उदघोष*
*उदघोष*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
उसको भी प्यार की ज़रूरत है
उसको भी प्यार की ज़रूरत है
Aadarsh Dubey
यूँ मोम सा हौसला लेकर तुम क्या जंग जित जाओगे?
यूँ मोम सा हौसला लेकर तुम क्या जंग जित जाओगे?
'अशांत' शेखर
बाहर से लगा रखे ,दिलो पर हमने ताले है।
बाहर से लगा रखे ,दिलो पर हमने ताले है।
Surinder blackpen
स्वर्ग से सुंदर अपना घर
स्वर्ग से सुंदर अपना घर
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
मैं जब करीब रहता हूँ किसी के,
मैं जब करीब रहता हूँ किसी के,
Dr. Man Mohan Krishna
बदलते रिश्ते
बदलते रिश्ते
Sanjay ' शून्य'
संपूर्णता किसी के मृत होने का प्रमाण है,
संपूर्णता किसी के मृत होने का प्रमाण है,
Pramila sultan
💥सच कहा तो बुरा मान गए 💥
💥सच कहा तो बुरा मान गए 💥
Dr.Khedu Bharti
हां मैं पागल हूं दोस्तों
हां मैं पागल हूं दोस्तों
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
আজ রাতে তোমায় শেষ চিঠি লিখবো,
আজ রাতে তোমায় শেষ চিঠি লিখবো,
Sakhawat Jisan
सच अति महत्वपूर्ण यह,
सच अति महत्वपूर्ण यह,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
आसाँ नहीं है - अंत के सच को बस यूँ ही मान लेना
आसाँ नहीं है - अंत के सच को बस यूँ ही मान लेना
Atul "Krishn"
कलमी आजादी
कलमी आजादी
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
"उम्र जब अल्हड़ थी तब
*Author प्रणय प्रभात*
माँ
माँ
लक्ष्मी सिंह
💐प्रेम कौतुक-448💐
💐प्रेम कौतुक-448💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
एहसास दे मुझे
एहसास दे मुझे
Dr fauzia Naseem shad
Loading...