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16 Jul 2022 · 1 min read

जब जब ही मैंने समझा आसान जिंदगी को।

गज़ल
क़ाफ़िया ‌-ई स्वर
रद़ीफ – को
मफ़ऊलु फाइलातुन मफ़ऊलु फाइलातुन
221…….2122…….221…….2122

जब जब ही मैंने समझा आसान जिंदगी को।
तब तब ही मैने खोया हर बार इक खुशी को।

कदमों में सिर रखा था इंसा न फिर भी पिघला,
भगवान ही समझते हैं बंदे की बंदगी को।

हम बन गए हैं हिंदू मुस्लिम व सिख इसाई,
इंसान सबसे पहले बनना है आदमी को।

चेहरों पे मुफलिसों के खुशियां तभी दिखेंगी,
पहुंचा के जब दिखाएं शमशान मुफलिसी को।

मुझसे नहीं हो मिलते हरदम उसी के पीछे,
राधा छुपा के बैठी मोहन की बांसुरी को।

मकरंद फूल से जब लेने गया था भौंरा,
जाकर के उसने चूमा पहले तो हर कली को।

वो राम राज होगा संभव तभी तो प्रेमी,
इक दूसरे से होगा जब प्यार हर किसी को।

……… सत्य कुमार प्रेमी

Language: Hindi
277 Views
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