चोट
चोट
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बेटा जवान हो गया था, अब उनका। बहुत लालसा पाल कर रखी थी, उसने। काफी संघर्षमय जिंदगी उनकी गुजरी थी। पर हाय, उनके सपने चूर-चूर हो गये थे। पति की लताड़ तो उन्हें मिलती ही थी, बेटे भी अपमानित करने का कोई कोर कसर बाकी नहीं रख रहा था।
सुनीता के बाल्यावस्था में ही उनके पिता की म़ृत्यु हो गई थी। बड़ी बेटी थी, अपने माता-पिता की वह। काफी संघर्षों से उनकी जिंदगी गुजरी थी।
माई ने जोड़-तंगेड़ कर कुछ रूपये इकट्ठा कर रख्खी थी। दुख के समय में भी कई सांझ भूखे रहकर पछबरिया बाध वाली खेत बचा कर रखी थी। एक बीघा खेत था, उनके पास। जमीन बेचकर बेटी सुनीता की शादी अच्छे घराने में कर दी थी। यह सोचकर कि बेटी ससुरारी में सुख भोगेगी।
पर सुनीता को ससुराल में सब दिन बात और लात ही मिला। यहां नैहर की तरह भी खेतों में मजदूरी करने के लिए जाना होता था। ससुराल की स्थिति भी ठीक नहीं था। शायद सुनीता की मां, ब्याह कराने में ठगा गई थी। सुनीता का एक साल बाद ही गोद में एक बेटा मिल गया। उसने ठान ली कि बेटे को पढ़ा लिखाकर बुद्धिमान बनाउंगी। पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी मिल जायेगी तो बुढ़ारी में अच्छे से देखभाल करेगा उनका।
बेटा पढ़ लिखकर नौकरी भी प्राप्त कर लिया।
उसने उस दिन बेटा को बस इतना ही तो कहा कि बेटे अब हमको भी अपने ही साथ ले चलो। अब समांग साथ नहीं दे रहा है, मेरा। अब मजदूरी नहीं हो पाता है, हमसे। इतना पर ही बेटा तमतमा गया था और माय पर गुस्सा झाड़ते ही शहर की ओर यह कहकर चल दिया कि अब मैं दुबारा यहां पैर नहीं रखूंगा। बेटे को वह रोकने का काफी प्रयास की। पर उनके द्वारा दिये गये एक धक्के से गिर पड़ी थी और आंखों से अश्रुधारा बहने लगी थी। शारीरिक चोट से अधिक मानसिक चोट ने उनका हृदयाघात कर दिया था।
————————————————————- मनहरण