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18 Feb 2017 · 1 min read

गीत ज्ञान बिचारा तड़प रहा

30 मात्रिक छंद

ज्ञान बिचारा तड़प रहा था बरसों पकड़ किताबो को।
सोच रहा था निकलू कैसे बाहर छोड़ ख़िज़ाबो को।

‘व्हाट्सअप’औ फेसबुको का मानो फिर अवतार हुआ।
दौड़ रहा बेधड़क इन्ही से अब तो तोड़ हिज़ाबो को।

रोज़ एक से एक बड़े ज्ञानी जन इससे मिलते है।
बिन प्रश्नो के बाँट रहे जो, रेवड जिमि जवाबो को।

सरस जूस सा तरल सभी को सुबह सुबह मिल जाता अब।
लगे भूलने खूब पियक्कड़ अब तो यार शराबो को।

लपेट ज्ञान के संग में देते तरह तरह के फूलो को।
पल में लोग खिला देते है वल्लाह फूल गुलाबो को।

लगना खत्म हुआ अब भारी भरकम महफ़िल का।
मोबाईल का शौक लगा है अब तो कई नवाबो को।

कहाँ ज़रूरत क़ज़ा बाद में अल्लाह उन फरिश्तों की।
अब तो बच्चे होकर माहिर करते पेश अजाबो को।

रोज़ खेलते है इससे जब तक मोबाइल चार्ज रहे।
सोते कब है देख देख कर अब पूरे महताबो को।

***मधु गौतम

Language: Hindi
Tag: गीत
403 Views
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