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2 Jun 2021 · 1 min read

कुण्डलिया- दारू

कुण्डलिया*

दारू में गुन बहुत है दारू करती ढ़ेर।
दारू से कई इक मिटे पार लगे न फेर।।

पार लगे न फेर, गृहस्थी चौपट हो गई।
आन,वान और शान, सभी धूरा में मिल गई।।

कह ‘राना:कविराय दारू है चाल बिगारू।
जो अपनों हित चाय,कभऊं न पीवें दारू।।

###

राजीव नामदेव “राना लिधौरी”
संपादक आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़(म.प्र.)
मोबाइल -9893520965

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