कविता:??आँचल की हवा करना??
हे शोभा के सदन!नयनों में बसा करना।
दीद के प्यासे हैं,तुम पूरी रज़ा करना।।
सजे अरमां मन में,ज्यों तारे हों गगन में।
प्रीत के प्यासे हैं,तुम हँसके वफ़ा करना।।
हृदय कोरा कागज़,दिले-क़ूची से लिख कुछ।
मिलन के प्यासे हैं,तुम रहमत बयां करना।।
रजनी-सा पाक है,मन-मंदिर-आँगन-चारु।
रूप के प्यासे हैं,चंदा-सा खिला करना।।
चकोर-मन मूर्ख ये,तुझको निहारे जाए।
प्रीत प्रीतम की है,आँचल की हवा करना।।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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माप….11-13-11-13