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27 Sep 2017 · 1 min read

कल्पतरु की मुस्कान हो

कितने सहज कितने सरल तुम,
मृदुभाषा की खान हो।
हर कोई गर्व करे तुम पर तुम,
साईं धाम की शान हो।।

सबसे हिल मिल कर रहते तुम,
सबका साथ निभाते हो।
एक डोर में बांध के सबको,
अपना फर्ज निभाते हो।।

चंचल चितवन शोख अदाएं,
अल्हड़पन तुम करते हो।
अपनी भाषा शैली के दम,
बात वज़न की करते हो।।

खुशियों के सौदागर हो तुम,
मददगार इंसान हो।
निर्मल मन और हंसता चेहरा,
‘कल्प’तरु की मुस्कान हो।।

छोटों से करते हो प्यार तुम,
करते बड़ों का सम्मान हो।
मात पिता की बात मानते,
सचमुच बहुत महान हो।।

~◆~◆~◆~◆~◆~◆~◆~◆~
अनुज विकास जी कठल को जन्मदिन पर समर्पित।

Language: Hindi
Tag: गीत
386 Views
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