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17 May 2022 · 1 min read

कलियों को फूल बनते देखा है।

कलियों को फूल बनते देखा है।
यूं मासूमियत को शूल बनते देखा है।।1।।

इतनी मोहब्बत अच्छी नहीं है।
हमने दिलो को फिजूल होते देखा है।।2।।

मिटटी को धूल बनते देखा है।
खुद पे आई तो उसूल तोड़ते देखा है।।3।।

हमनें मां में खुदा को देखा है।
उसकी दुआ को कबूल होते देखा है।।4।।

लकड़ियां चुभ जायेंगी छूने से।
सूखे दरख्तों को बबूल होते देखा है।।5।।

हर मन्नत यहां पे पूरी होती है।
यूं दुआओं को मकबूल होते देखा है।।6।।

रिश्तों में अब दौलत आ गईं है।
सब को इसमें मशगूल होते देखा है।।7।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ

1 Like · 4 Comments · 242 Views
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