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21 Sep 2017 · 1 min read

एक विशाल बरगद के साये

एक विशाल बरगद के साये।
जब दो पग नन्हें से आये।।
विस्मित होकर देख रहे थे।
चंचल मन-नैना अकुलाये।।
सम्मुख वह वट वृक्ष तना था।
कौतुहल में बालमना था।
मन भीतर इक भय अज्ञात था।
सम्मुख गिरि के लघुगात था।
फिर सकुचाते कदम बढ़ाये।
मिटे मिथक सब बने बनाये।।
जो भी शरणागत हो आता।
वृक्ष छाँव सघन बरसाता।।
अनुभव के पत्ते सजे डाल थे।
दो कर जुड़े,बस निहाल थे।।
दो कर जुड़े,बस निहाल थे…….
✍हेमा तिवारी भट्ट✍

Language: Hindi
485 Views
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