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14 Feb 2017 · 1 min read

II अभी तुमने…..II

अभी तुमने यहां देखी कहां अच्छाइयां मेरी l
मुझे चलने नहीं देती यहां परछाइयां मेरी ll

न हो मुश्किल कहीं जाना, रहो भी दूर कुछ इतना l
अभी तुमने कहां जानी यहां नाकामियां मेरी ll

देता रहा मैं मशवरा रस्में निभाने की l
मुझे ही अब रुलाती है यहां पाबंदियां मेरी ll

न बिजली है न पानी और, मेरा हाल भी बदतर l
पड़ी है मुद्दतों से लंबित, कई अर्जियां मेरी ll

बहुत कुछ हम भी दोषी है, हमारी बुत परस्ती में l
कहीं ले ले ना अब तो जान ,ही खामोशियां मेरी ll

ना रहने दो कभी उनको ,यहां कमतर किसी से तुम l
जमाने को ही जन्नत कर रही हैं बेटियां मेरी ll

संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश l

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