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12 Feb 2017 · 1 min read

II दीप उम्मीद का II

मुश्किलें भी मिली चैन जाता रहा l
ठोकरों से सदा जख्म पाता रहा ll

चांद आता रहा और जाता रहा l
दीप उम्मीद का जगमगाता रहा ll

कितनी रातें कटी भोर की आस में l
मन बिना बांसुरी गीत गाता रहा ll

राह मुश्किल रही है सदा प्रीत की l
कांटे चुभते रहे मुस्कुराता रहा ll

अन कहा ही रहा उस से रिश्ता मेरा l
बिन वादे हि वादा निभाता रहा ll

प्रीत की रीत ऐसी हि होती “सलिल” l
जाने वाला हि राह दिखाता रहा ll

संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश l

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