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12 Sep 2017 · 1 min read

२१२२–१२१२–२२
अर गया कब का

आंख से तो उतर गया कब का
जख्म सीने का भर गया कब का

टूटकर दिल को अब समझ आया
खेल वो खेलकर गया कब का

जाने ये दिल भी आ गया किसपर
दिल ही लेकर मुकर गया कब का

सांझ का इक दिया मेरे घर का
आंसुओ से वो भर गया कब का

फूल इक आस का लगाया था
शाख से वो भी झर गया कब का

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