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11 Jul 2017 · 1 min read

ग़ज़ल

हर शय का इस तरह एहतिमाम होता है
गूंगों से पूछ कर यहां काम होता है

साबित है घर किसका हंगामा-ए-शहर से
चोर-सिपाही में अब दुआ-सलाम होता है

इश्क़ में करती हैं खता आँखें अक्सर
दिले – नादाँ पर क्यों इलज़ाम होता है

क़र्ज़ की सूरत है लहू उसका वतन पर
माज़ी के पन्नों में जो गुमनाम होता है

यार कोई यकबयक मिलता है जब कभी
फिर तकल्लुफ का नहीं कोई काम होता है

गिरता है पहाड़ों से झरना कोई जैसे
मेरी साँसों की लय में तेरा नाम होता है

बदकारी,अय्यारी,सहूलियतें सरकारी
इस दौर में रहबर का यही काम होता है

1 Like · 1 Comment · 296 Views
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