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12 May 2017 · 1 min read

ग़ज़ल

यही मिला है मुझे उसके प्यार में
बिखर गया हूँ मैं अपने हिसार में

किसी दिन रसोई में लग जाएंगे ताले
क्या नहीं मिलता अब दोस्तों बाज़ार में

ग़ुरूर मुझे अपनी तन्हाइयों पर है
हर वक़्त रहता हूँ फ़िक्र के हिसार में

अज़्म किया था एक तवील सफर का
पर छोड़ गया मुझे वो रहगुज़ार में

चल रहा है उसकी यादों का कारवां
जैसे खड़ा हूँ मैं किसी रेगज़ार में

इक सैलाब चाहिए इंक़लाब के लिए
आग जलती है जैसे लालाज़ार में

कोई मिल जाता है किसी को बेसाख्ता
उम्र कट जाती है कभी इंतज़ार में

बुझी है न बुझेगी ये आग अदब की
फरोजां है इतना मेरे किरदार में

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