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29 Nov 2016 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल

हवेली, खेत , कारोबार ,पैसा माँग लेते हैं !
बड़े होते ही बच्चे अपना हिस्सा माँग लेते हैं !

बुजुर्गों की दुवाओं का सहारा माँग लेते हैं !
क़दम जब लडखड़ाते हैं तो कांधा माँग लेते हैं!

बड़े फय्याज हो तुम शहर भर में है यही चर्चा!
तो फ़िर हम तुम को ही तुम से सरापा माँग लेते हैं !

नयी नस्लों को ये खानाबदोशी मुंह चिढ़ाएगी!
खुदा से इस लिये हम ईक ठिकाना माँग लेते हैं !

कमी बेटी में भी कोई नहीँ होती मगर, रब से!
बहोत से लोग है ऐसे जो बेटा माँग लेते हैं!

तलब करती है कूछ ऐसे मुझे दुनिया भी अऐ मोहसिन !
के बच्चे जिस तरह कोई खिलौना माँग लेते हैं !
(मोहसिन आफ़ताब केलापुरी)

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